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________________ श्री समवायाह सूत्र !! धुं अंग ॥ १७० ॥ एणं ति -- जैम घडाना मुखथी नीकळतो होय तेम मुक्तावळीना एटले मोतीनी सेरवाळा हारनुं जेवुं संस्थान (आकार) वा संस्थाने रहेला प्रपातवडे एटले पर्वतथी पडता जळसमूहवडे मोटा शब्दे करीने पडे छे ( २ ) । ए ज प्रमाणे सीता महानदी पण कवी. तेमां विशेष ए के ते नदी नीलवान नामना वर्षधर पर्वतथकी दक्षिण दिशानी सन्मुख जड़ने ( सीता प्रपातकुंड मां ) पडे छे (३) । 'चउत्थवज्जेत्यादि ' तेमां पहेली पृथ्वीमां त्रीश लाख, बीजीमां पचीश लाख, त्रीजीमां पंदर लाख, पांचमीमां त्रण लाख, छठीमां पांच ओछा एक लाख अने सातमीमां पांच- आ सर्व मळीने चुमोतेर लाख थाय छे ( एकंदर ८० लाखमांथी चोथी नरक पृथ्वीना ६ लाख नरकावास बाद करतां ७४ लाख रहे छे ) (४) ॥ सूत्र- ७४ ॥ • हवे पंचोतेरमुं स्थान कहे छे -- मू० - सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ पन्नत्तरि जिणसया होत्या । १ । सीतले णं अरहा पन्नत्तरि पुव्वसहस्साई अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए । २ । संती णं अरहा पन्नत्तरिवास सहस्साइं अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । ॥ ३ ॥ सूत्रम् - ७५ ॥ मूलार्थ:-- सुविधिनाथ एटले पुष्पदंत अरिहंतने पंचोतेर सो सामान्य केवळी हता ( १ ) | श्री शीतळनाथ अरिहंत पंचोतेर हजार पूर्व सुधी गृहवास मध्ये रहाने पछी मुंड थइ यावत् प्रव्रजित थया ( २ ) । श्री शांतिनाथ अरिहंत पंचोतेर समवाय ७५ ॥ ॥ १७० ॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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