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________________ - समवायाङ्ग पत्र॥ पोधु अंग ॥१६४॥ जन - हवे एकोतेरसुं स्थान कहे छे समवाय मूल-चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स हेमंताणं एकसत्तरीए राइंदिएहिं वीइकतेहिं सबबाहि- ७१॥ राओ मंडलाओ सूरिए आउटिं करेइ । १ । वीरियप्पवायस्स णं पुवस्स एकसत्चरिं पाहुडा पन्नत्ता । । २ । अजिते णं अरहा एकसत्तरिं पुव्वसयसहस्साई अगारमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पवइए।३। एवं सगरो वि राया चाउरंतचक्कवट्टी एकसत्तरि पुव्व जाव पवइए ति।४॥ सूत्रम्-७१॥ मूलार्थः-चोथा चंद्र संवत्सरना हेमंतऋतुना एकोतेर रात्रिदिवस व्यतीत थाय त्यारे सूर्य सर्व बाह्य मंडळथकी आवृत्ति करे छे (१)। वीर्यप्रवाद नामना पूर्वमा एकोतेर प्राभृतो कहेला छे (२)। श्रीअजितनाथ अरिहंत एकोतेर लाख पूर्व गृहस्थवास मध्ये वसीने पछी मुंड थइ यावत् प्रव्रजित थया (३)। एज प्रमाणे सगर नामना चार दिशाना अंत सुधीना चक्रवर्ती राजा पण एकोतेर लाख पूर्व राज्य भोगवीने यावत् प्रव्रजित थया हता (४)॥ टीकार्थ:-हवे एकोतेरमा स्थानने विपे काइक लखे छे–'चउत्थस्सेत्यादि'-आ सूत्रनो भावार्थ आ प्रमाणे छे-एक युगमा पांच संवत्सर होय छे. तेमा पहेला वे चंद्र संवत्सर होय छे, त्रीजो अभिवधित संवत्सर अने चोथो चंद्र संवत्सर ज छे. तेमां ओगणत्रीश दिवस अने एक दिवसना बासठीया बत्रीश भाग २९३३ प्रमाणवाळो एक चंद्र मास थाय [छे. आ.मासने बारे गुणीए त्यारे एक चंद्र संवत्सर थाय छे. अने आमासने ज तेरे गुणीए त्यारे अभिवार्धित संवत्सर ना॥१६
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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