________________
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
अंग
॥ १४ ॥
अंशवाळो थाय छे.
. (६८) धातकीखंड द्वीपमां अडसठ चक्रवर्तीना विजयो अने अडसठ राजधानीओ छे, उत्कृष्टपणे अडसठ तीर्थकरो उत्पन्न थाय छे, ए ज प्रमाणे चक्रवर्ती, बळदेव अने वासुदेव पण जाणवा, पुष्करार्धद्वीपने विषे पण ते ज प्रमाणे सर्व जाणवुं. श्रीविमळनाथस्वामीने अडसठ हजार साधुओ हता.
( ६९ ) अढी द्वीपमां मेरु पर्वत विना बाकी सर्व मळीने ओगणोतेर क्षेत्र अने वर्षधर पर्वती छे ( ३५ क्षेत्रो ३० वर्षधर पर्वतो ने ४ इपुकार समजवा ), मेरु पर्वतनी पूर्व दिशाना छेडाथी गौतम द्वीपना पश्चिम छेडा सुधी ओगजोतेर हजार योजननुं आंतरुं छे, मोहनीय कर्म सिवाय बीजा सात कर्मनी मळीने ओगणोतेर उत्तरप्रकृतिओ छे.
( ७० ) महावीरस्वामी वर्षाऋतुना वीश दिवस सहित एक मास व्यतीत थये सते अने सीतेर दिवस बाकी
रहे सते चोमासु रह्या (पर्युषणा करी एटले रहेवानो निर्णय कर्यो ), श्रीपार्श्वनाथ प्रभु परिपूर्ण सीतेर वर्ष साधुपर्याय पाळीने सिद्ध थया, श्रीवासुपूज्यस्वामी सीतेर धनुष ऊंचा हता, मोहनीय कर्मनी स्थिति सीतेर कोडाफोडी सागरोपमनी छे, महेंद्र कल्पना इंद्रने सीतेर हजार सामानिक देवो छे.
(७१) चोथा चंद्र संवत्सरना हेमंत ऋतुना एकोतेर दिवस जाय त्यारे सूर्य सर्व बाह्य मंडळथी पाछो फरे छे, वीर्यप्रवाद नामना पूर्वमां एकोतेर प्राभूत छे, श्री अजित. नाथ प्रभु एकोतेर लाख 'गृहवास मध्ये रहीने प्रव्रजित थया हुता, सगर नामना चक्रवर्ती पण एकोतेर लाख पूर्व राज्य भोगवीने प्रब्रजित थया हता.
( ७२ ) सुवर्णकुमारना वोंतेर लाख भवनो छे, लवण समुद्रनी बहारनी वेळाने बोंतेर हजार नागकुमार देवो धारण करे छे, श्रीमहावीरस्वामी यतेर वर्षनुं कुल आयुष्य
विषयानु
क्रम ॥
॥ १४ ॥