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________________ "" ए ज टीकार्थ:- हवे अडसठमा स्थानक विषे कांइक लखे छे -' धायइसंडे इत्यादि - अहीं एम कछु केप्रमाणे चक्रवर्ती, वळदेव अने वासुदेवने माटे पण कहेवुं " तेमां जो के चक्रवर्तीओ अने वासुदेवो एककाळे अडसठ संभवता नथी, केम के जघन्यथी पण एक एक महाविदेहने विषे चार चार तीर्थंकरो अवश्य होय छे एम स्थानांग विगेरे सूत्रोमा क छे, पण एक क्षेत्रमां, एकी समये चक्रवर्ती अने वासुदेव ते प्रमाणे होता नथी, तेथी करीने अडसठ विजयोने विये उत्कर्षथी अडसठ चक्रवर्ती अने वासुदेव ( बन्ने मळीने ) होइ शके छे.' तो पण आ सूत्रमां एकी समये एम विशेष कह्यो नथी तेथी जुदे जुदे काळे थनारा चक्रवर्ती विगेरे जुदी जुदी विजयने आश्रीने थाय तो तेमां कांइ विरोध नथी. ते • बाबत जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिमा भारतक्षेत्र अने कच्छ विगेरे विजयना आलावावडे चक्रवर्तीओ केटला थाय ते कर्तुं छे (त्यांथी जोड़ लेवुं.) (२) || सूत्र - ६८ ॥ हवे ओगणोतेरमुं स्थान कहे छे मू---समयखित्ते णं मंद्रवज्जा एगूणसत्तरिं वासा वासधरपवया पन्नत्ता, तं जहा - पणतीसं वासा तीसं वासहरा चत्तारि उसुयारा । १ । मंदरस्स पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ १. उत्कृष्ट थाय तो एक महाविदेहनी ३२ विजयमांथी २८ मां चक्रवर्ती ने ४ मां वासुदेव थाय अथवा २८ मां वासुदेव अने ४ मां चक्रवर्ती थाय एम स्पष्ट कहेल छे. भरत ने ऐरवतमां एकेक थाय ते भेळवीए तो ३० ने ४= ३४ थाय एम समजवुं. बे महाविदेहादिना मळीने ६० ने ८=६८ समजवा.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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