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श्री समवाया चोधु अंग
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वने या समवाय गोयमद्दीवस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं एगूणसत्तरि जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । मोहणिज्जवजाणं सत्तण्हं कम्मपगडीणं एगूणसत्तरं उत्तरपगडीओपन्नत्ताओ॥३॥ सूत्रम्-६९॥
मूलार्थ:-समयक्षेत्र( अढी द्वीप )मां मेरु पर्वत विना बाकी सर्व मळीने ओगणोतेर वर्ष (क्षेत्र ) अने वर्षधर पर्वतो all कया छे. ते आ प्रमाणे-पांत्रीश क्षेत्रो, त्रीश वर्षधर पर्वतो अने चार इपुकार पर्वतो (१) । मेरु पर्वतनी पूर्व दिशाना छेडाथी बना
गौतम द्वीपना पश्चिम छेडा सुधी ओगणोतेर हजार योजननु अबाधाए आंतरूं कयु छ (२) । एक मोहनीय कर्मने वर्जीने बाकीनी सात कर्मप्रकृतिनी उत्तर प्रकृतिओ ओगणोतेर कहेली छे ॥३॥
टीकार्थ:--हवे ओगणोतेरमा स्थानक विपे काइक लखे छे-'समयेत्यादि-मंदरने वर्जीने एटले मेरु पर्वतने वर्जीने वर्ष एटले भरत विगेरे क्षेत्रो तथा वर्षधर पर्वतो एटले ते क्षेत्रोनी सीमाने करनारा हिमवान विगेरे वर्षधर पर्वतो ए सर्वे मळीने ओगणोतेर कह्या छे. केवी रीते ? ते कहे छे-पांच मेरु पर्वतने आश्रीने सात सात भरत, हैमवत विगेरे मळीने पांत्रीश क्षेत्रो छे, तथा दरेक मेरुने आश्रीने छ छ हिमवान विगेरे वर्षधर पर्वतो होवाथी कुल त्रीश पर्वतो छ, तथा धातकीखंडमां २ ने पुष्कराधमां २ मळी चार इषुकार पर्वत छे. आ सर्वे मळीने ओगणोतेर थाय छे (१)। 'मंदरस्सेत्यादि'लवणसमुद्रमा पश्चिम दिशाए बार हजार योजन जइए त्यां बार हजार योजनना प्रमाणवाळो अने सुस्थित नामना लवणसमुद्रना अधिपतिना भवनवडे सहित गौतमद्वीप नामनो द्वीप छे. तेनो पश्चिम तरफनो छेडो मेरु पर्वतना पश्चिम छेडा थकी ओगणोतेर
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