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________________ नक्षत्रो त्रीश महर्जना संयोगवाळा छे. तेमनी साथे चंद्रनो योग संक्षेपथी हुँ कहुं छु." आ प्रमाणे एक, छ, छ अने पंदरासमवाय समवाया। एम कुल अठ्ठावीश नक्षत्रोंना अढार सो ने त्रीश १८३० सडसठीया भाग थाय छे, तेने बमणा करवाथी छप्पन नक्षत्रो ६८॥ सूत्र॥ थाय छे अने तेना सडसठीया भाग त्रण हजार छसो ने साठ ३६६० थाय छे (४) ॥ सूत्र-६७॥ चोधू अंग हवे अडसठमुं स्थान कहें छे ___मुं०-धायइसंडे णं दीवे अडसद्धिं चक्कवद्विविजया अडसद्धिं रायहाणीओ पन्नत्ता।। उक्कोसपए ॥१६॥ अडसाद अरहंता समुप्पजिंसु वा समुप्पजति वा समुप्पजिस्सति वा ।२। एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा । ३ । पुक्खरवरदीवड्ढे णं अडसद्धिं विजया एवं चेव जाव वासुदेवा । ४ । विमलस्स णं अरहओ अडसद्धिं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था । ५॥ सूत्रम्-६८॥ ... मूलार्थ:-धातकीखंड द्वीपमा अडसठ चक्रवर्तीना (चक्रवर्तीने जीतवा योग्य) विजयो अने अडसठ तेमनी राजधानीओ कही छे (बे महाविदेहनी ६४ विजय, २ भरत ने २ ऐरवत मळी ६८ समजवी) (१)। उत्कृष्टपणे अडसठ तीर्थकरो उत्पन्न थया हता, उत्पन्न थाय छे अने उत्पन्न थशे (२)। एज प्रमाणे चक्रवर्ती, वळदेव अने वासुदेवने माटे पण कहेवु (३) । पुष्करार्ध द्वीपने विषे पण चक्रवर्तीना अडसठ विजयो विगेरे सर्व यावत् वासुदेव सुधी कहेवू (४)। श्रीविमलनाथ तीर्थकरने अडसठ हजार साधुओरूपी उत्कृष्ट साधुसंपदा हती (५)॥ ॥१६॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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