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समवाय ६७॥
समवायाङ्ग
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चोथु अंग ॥१६॥
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आयामवडे एटले लंबाइवडे कहेलुं छे (२)। 'मंदरस्सेत्यादि-मेरुपर्वतनी पूर्व दिशाना छेडाथी पश्चिम दिशानी जगतीना बाह्य छेडा सुधी जंबूद्वीपर्नु प्रमाण पंचावन हजार योजननुं छे, त्यांथी आगळ लवणसमुद्रमां बार हजार योजन जइए त्यां गौतमद्वीप नामनो द्वीप छे, तेने आश्रीने आ सूत्रनो अर्थ ( सडसठ हजार योजननु आंतरं का ते) संभवे छे; केमके पंचावन हजार अने बार हजार मळीने सडसठ हजार थाय छे. जो के सूत्रना ग्रंथोमां गौतम शब्द देखातो नथी, तो पण ते जाणवो, केम के जीवाभिगम विगेरे सूत्रोमां लवणसमुद्रने विपे गौतमद्वीप अने चंद्र सूर्यना द्वीपो सिवाय बीजा द्वीपो सांभळवामां आवता नथी (३)। 'सव्वेसिंपिणमित्यादि'-'णं' शब्द वाक्यना अलंकार भाटे लख्यो छे. सर्वे नक्षत्रोनो सीमाविष्कंभ एटले पूर्व अने पश्चिम दिशामां चंद्र जेटला क्षेत्र सुधी नक्षत्रोनी साथे भोगवटो करे ते क्षेत्रनो जे विस्तार छे ते नक्षत्रे एक अहोरात्रे करीने जेटलुं क्षेत्र भोगववानुं छे ते क्षेत्रने सडसठ भागे भागाकार करवाथी सम अंशवाळो एटले समान भागवाळो कयो छे. परंतु नक्षत्रनी सीमानो विष्कम सडसठ सिवाय बीजा कोइ भागे करीने भागाकार करीए तो ते विषम च्छेदवाळो (विपम अंशवाळो) थाय छे अर्थात् वीजा भागे करीने भागी शकातो ज नथी. ते आ प्रमाणे-(एक) नक्षत्र एक अहोरात्रे करीने जे (जेटलं) क्षेत्र ओळंगे ते क्षेत्रना सडसठीया एकवीश भाग जेटलो अभिजित् नक्षत्रनो क्षेत्रथी (क्षेत्रने आश्रीने) सीमाविष्कंभ थाय छे. अर्थात् आटला ( सडसठीया एकवीश भाग प्रमाण ) क्षेत्रमा चंद्रनी साथे ते नक्षत्रनो योग कहेवाय छे. तथा त्रीश मुहत्तनी एक अहोरात्र होवाथी ते ज एकवीशने त्रीशे गुणवाथी ६३० थाय, तेने सडसठे भागवाथी
१. अहीं क्या सूत्रमा गौतम शब्द देखातो नथी ? ते वात टीकाकारे स्पष्ट करी नथी.
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