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________________ टीकार्थ :- सड़सठमा स्थानकमां कांइक व्याख्या करे छे—तेमां पंचसवच्छरीत्यादि नक्षत्र मास एटले चंद्र जेटले काळे आखा नक्षत्रमंडळने भोगवी रहे, ते काळ सत्तावीश रात्रिदिवस अने उपर एक रात्रिदिवसना सडसठीया एकवीश भाग २७ एटलं एक मासनुं प्रमाण छे. तथा युगनुं प्रमाण अढार सो ने त्रीश दिवसनुं थाय छे एम प्रथम वतान्युं छे. हवे नक्षत्र मासना रात्रिदिवसनुं जे प्रमाण (२७) कह्युं छे, तेने एक दिवसना सडसठ भागे स्थापन कर• वाथी ( गुणवाथी) जे प्रमाण (संख्या) अठार सो ने त्रीश १८३० आवे छे तेनावडे युगना ( पांच वर्षना ) दिवसनी संख्याने (१८३० ने) सडसठीया भागपणे स्थापन करवाथी ( सडसठे गुणवाथी ) जे एक लाख, बावीश हजार, छ सो ने दश १२२६१० नी संख्या आवे छे तेने ( १८३० वडे ) भागवाथी ( एक युगमां ) सडसठ नक्षत्र मास प्राप्त थाय छे (१) । ' वाहाओ त्ति ' - लघु हिमवान पर्वतनी जीवाथी आरंभीने हेमवंतक्षेत्रनी जीवा सुधीमां पूर्व अने पश्चिम तरफनी 'जे क्षेत्र प्रदेशनी पंक्ति बधती होय छे ते बन्ने हेमवंतक्षेत्रनी बाहु कहेवाय छे. ए ज प्रमाणे ऐरण्यवतनी बाहु पण जाणवी. अहीं (आ चाहुना ) प्रमाणनो संवाद आ प्रमाणे छे – “ सडसठ सो ने पंचावन योजन तथा त्रण कळा एटलं हेमवंत क्षेत्रनी बाहानुं प्रमाण छे । " अहीं कळा एटले एक योजननो ओगणीशमो भाग जाणवो । आ बाहुनुं प्रमाण आ रीते सिद्ध थाय छे-हेमवंत क्षेत्रनुं धनुःपृष्ठ जे आडत्रीश हजार, सात सो ने चाळीश योजन अने उपर दश कळा ३८७४० १९ कयुं छे तेथी हिमवान पर्वतनुं धनुःपृष्ठ पचीश हजार, बसो ने त्रीश योजन अने उपर ४ कळा २५२३० बाद करवाथी जे बाकी रहे ( १३५१०१३) तेने (वे तरफना वे बाहुनुं प्रमाण जुदुं कहेतुं छे तेथी ) अर्ध करवाथी एक बाहुनुं प्रमाण ( ६७५५ - ३ )
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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