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________________ समवायाङ्ग सूत्र ॥ चो अंग ॥१५९॥ प्रमाण अधिक समज. तथा सर्व जीवोने आश्रीने कहीए तो सर्व काळ मतिज्ञाननी स्थिति जाणवी.” (६) || सूत्र - ६६ ॥ हवे सडसठ स्थान कहे छे मू० - पंचसवच्छरियस्स णं जुगस्स नक्खत्तमासेणं मिज्जमाणस्स सत्तसट्ठि नक्खत्तमासा | १ | वरन्नवयाओ णं बाहाओ सत्तट्ठि सत्तट्ठि जोयणसयाई पणपन्नाई तिणि य भागा जोयणस्स आयामेणं पन्नत्ता । २ । मंदरस्स णं पवयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोयमदीवस पुरच्छिमिले चरमंते एस णं सत्तसट्ठि जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । ३ । सवेसिं पिणं नखत्ताणं सीमाविक्खंभे णं सत्तट्ठि भागं भइए समंसे पन्नत्ते । ४ ॥ सूत्रम् -- ६७ ॥ मूलार्थ:- पांच संवत्सररूप एक युगनुं नक्षत्र मासे करीने माप करीए तो सडसठ नक्षत्र मास थाय छे ( १ ) । हैमवत अने ऐरण्यवत बने क्षेत्रनी बाहा सडसठ सडसठ सो ने पंचावन योजन तथा उपर एक योजनना त्रण भाग जेटली लांबी कही छे ( २ ) । मेरु पर्वतनी पूर्व दिशाना छेडाथी गौतम द्वीपनी पूर्व दिशाना छेडा सुधीमां सडसठ हजार योजननुं अबाधाए आंतरुं कथं छे (३) । सर्व नक्षत्रोनी सीमानो विष्कंभ सडसठमे भागे भाज्यो सतो ( सडसठे भागाकार कर्यो सतो ) समान अंशवाळो थाय छे ( अर्थात् वीजा कोइपण अंकवडे भागवाथी समान अंशवाळो थतो नथी-वीजा कोइ अंकवडे भागी शकातो नथी. ) ( ४ ) ॥ समवाय ६७ ॥ ॥१५९॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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