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| अरिहंतने छासठ गणो अने छासठ गणधरो हता (५)। आभिनियोधिक ( मति ) ज्ञाननी उत्कृष्ट स्थिति छासठ सागरो
पमनी कही छे (६)॥ ____टीकार्थः-हवे छासठमुं स्थान कहे छे-तेमां 'दाहिणेत्यादि'-मनुष्य क्षेत्रनुं जे अर्ध ते अर्ध मनुष्य क्षेत्र कहेवाय छे, (षष्ठी.तत्पुरुष ) दक्षिण तरफनुं जे अर्ध मनुष्यक्षेत्र ते दक्षिणार्ध मनुष्यक्षेत्र कहेवाय छे (कर्मधारय ) तेने विषे जे थयेला ते दाक्षिणार्ध मनुष्यक्षेत्र कहेवाय छे. अहीं 'णं' शब्द वाक्यना अलंकार माटे छे. छासठ चंद्रो प्रकाश करवा लायक वस्तुने प्रकाशता हता, अथवा लिंगनो फेरफार करवाथी दक्षिण तरफना जे मनुष्यक्षेत्रना अर्ध भाग तेमने प्रकाशता हता. अथवा पाठांतरमां सप्तमी विभक्ति लइए तो दक्षिणार्ध मनुष्यक्षेत्रने विषे प्रकाश करवा लायक वस्तुने प्रकाशता हता, एम अर्थ करवो. ते छासठ आ प्रमाणे-जंबूद्वीपमां बे चंद्र, लवण समुद्रमा चार, धातकीखंडमां बार, कालोदधि समुद्रमां बेंताळीश अने पुष्करार्धमां बोंतेर चंद्रो छे. आ सर्व मळीने एक सो ने बत्रीश थाय छे, तेनुं अर्ध करवाथी छासठ चंद्रो
दक्षिण श्रेणिमां अने छासठ चंद्रो उत्तर श्रेणिमा रहेला छे. ज्यारे उत्तर श्रेणि पूर्वमा जाय त्यारे दक्षिण श्रेणि पश्चिममां | जाय छ (१)। एज प्रमाणे सूर्यनुं सूत्र पण जाणवू (२)। श्रीश्रेयांसनाथ प्रभुने छासठ गणो अहीं कह्या, पण
आवश्यक सूत्रमां तो छोतेर कह्या छे, ते मतांतर जाणवू (५)। छासठ सागरोपमनी जे स्थिति कही छे तेमां जे का अधिक छे, ते कहेवाने इच्छयु नथी. कारण के आ प्रमाणे अन्य स्थळे पण का छे के-“बे वार विजयादिक विमानमां गयेलाने अथवा त्रण वार अच्युत देवलोकमां गयेलाने छासठसागरोपमनी स्थिति थाय छे तेमां मनुष्य भव संबंधी स्थितिनुं