________________
समवाय
श्री समवायाङ्ग
सूत्र ॥ चोधं अंग
॥१५८
वरावर समजवामां आवतुं नथी; केमके मोटानो गृहस्थपर्याय पांसठ वर्षनी अने नानानो गृहस्थपर्याय त्रेपन वर्पनो घटी शके छ (परंतु मोटाथी नानानो गृहस्थपर्याय वधारे घटी शकतो नथी.)(२)। सौधर्म देवलोकना मध्य भागमा इंद्रना निवासभुत सौधर्मावतंसक नामर्नु विमान रहेलुं छे. तेनी एकएक ( दरेक) दिशामां प्राकारनी समीपे रहेला भौम एटले नगरना आकारो छ, अथवा कोइक कहे छे के विशेष प्रकारना स्थानो छ (३)॥ सूत्र-६५ ॥ हवे छासठमुं स्थान कहे छे
मू०-दाहिणड्डमाणुस्सखेत्ता णं छावाटुं चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा ।१।। छावढेि सूरिया तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा । २ । उत्तरडमाणुस्सखेत्ता णं छावढेि चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा ।३। छावद्धिं सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा। ४ । सेज्जंसस्स णं अरहओ छावढेि गणा छावढेि गणहरा होत्था। ५। आभिणिबोहियनाणस्स णं उक्कोसेणं छावर्द्धि सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । ६॥ सूत्रम्-६६ ॥
मूलार्थ:-दक्षिणार्ध मनुष्य क्षेत्रमा थयेला (रहेला) छासठ चंद्रो प्रकाशता हता, प्रकाशे छे अने प्रकाशशे (१)। एज प्रमाणे छासठ सूर्यो तपता हता, तपे छे अने तपशे (२)। उत्तरार्ध मनुष्य क्षेत्रमा थयेला (रहेला) छासठ चंद्रो प्रकाशता हता, प्रकाशे छे, अने प्रकाशशे (३)। एज प्रमाणे छासठ सूर्यो तपता हता, तपे छे अने तपशे (४)। श्री श्रेयांसनाथ
कि