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________________ 14 | असुरकुमार निकायना राजा जे बलींद्र छे तेने ६०००० सामानिक देवो होय छे' (४)। 'बंभस्स त्ति'-ब्रह्मलोक | नामना पांचमा देवलोकना इंद्र (ब्रह्म नामना छे) (५)। 'सहि त्ति'--सौधर्म कल्पमां बनीश लाख अने ईशा कल्पमा अठ्ठावीश लाख विमानो छे, ते बन्ने मळीने साठ लाख विमानो थाय छ (६) ॥ सूत्र-६०॥ हवे एकसठमुं स्थान कहे छे-- __ मू०-पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स रिउमासेणं मिजमाणस्स इगसद्धिं उऊमासा पन्नत्ता ।१। मंदरस्स णं पवयस्स पढमे कंडे इगसट्ठिजोयणसहस्साइं उ8 उच्चत्तेणं पन्नत्ते । २। चंदमंडले णं एगसट्ठिविभागविभाइए समंसे पन्नत्ते । ३ । एवं सूरस्त वि । ४ ॥ सूत्रम्-६१॥ मूलार्थ:--पांच संवत्सरनो एक युग थाय छे, तेने ऋतु मासे करीने मान करतां एकसठ ऋतु मास कह्या छे' (१)। मेरुपर्वतनो पहेलो कांड एकसठ हजार योजन ऊंचो कह्यो छे (२)। चंद्रनुं विमान (एक योजनना) एकसठीया भागे मापित होवाथी समांश (५६ भागर्नु) कहेलुंछे (३)।एज प्रमाणे सूर्यनु विमान पण समांश (सरखा अंशवाळ४८ भागनुं) जाणवू. (४)। टीकार्थ:--हवे एकसठमा स्थान विपे काइक कहे छे-तेमां'पंचेत्यादि'-पांच वर्षे करीने जे नीपज्य १. टीकामां भवन शब्द लख्यो छे ते बराबर ठीक लागतो नथी. २. एक ऋतु मासना ३० दिवस होवाथी ६१ ऋतु मासना १८३० दिवस थाय छे. aaamw
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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