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समवाय
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समवायाङ्ग पत्र॥ चोधू अंग
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त्सरिक कहेवाय छे. 'णं' शब्द वाक्यनी भृपा माटे छे. आवा पांच वर्षनो एक युग होय छे एटले विशेष प्रकारना काळनुं प्रमाण होय छे, ते युगना चंद्रादिक मासवडे नहीं, पण ऋतुमासवडे प्रमाण करवाथी एकसठ ऋतुमास कह्या छे, अहीं आ भावार्थ छे-पांच संवत्सरनो एक युग कहेवाय छे. ते आ प्रमाणे-चंद्र, चंद्र, अभिवर्धित, चंद्र अने अभिवर्धित (ए नामनां पांच संवत्सर छे). तेमा ओगणत्रीश अहोरात्र अने एक अहोरात्रना बासठीया वत्रीश भाग २९३२ आटलं प्रमाण कृष्ण प्रतिपदाथी आरंभीने पूर्णिमा सुधीनुं थाय छे, ते प्रमाणे एक चंद्रमास कहेवाय छे. एवा बार मासना प्रमाणवाळो एक चंद्रसंवत्सर थाय छे, तेनुं प्रमाण आ प्रमाणे छे-त्रण सो ने चोपन दिवस तथा एक दिवसना बासठीया चार भाग ३५४३३। तथा एकत्रीश दिवस अने उपर एक दिवसना एक सो ने चोवीश भाग करीए तेवा एक सो ने एकवीश भाग ३११२१ आटला प्रमाणवाळो अभिवर्धित मास थाय छ, आवा मासवडे बार मासना प्रमाणवाळो एक अभिवर्धित संवत्सर थाय छे. तेमांत्रण सो ने त्राशी दिवस अने उपर एक दिवसना बासठीया चुमाळीश भाग ३८३३३ जेटलं प्रमाण थाय छ । आ उपर कह्या प्रमाणे त्रण चंद्र संवत्सर अने वे अभिवर्धित संवत्सर ए पांचे संवत्सरने एकठा करवाथी अढार सो ने त्रीश १८३० अहोरात्र थाय छे. तथा ऋतु मास त्रीश अहोरात्रनो होय छे, तेथी तेने ( १८३० ने) त्रीशे भागवाथी एकसठ ऋतु मास (एक युगने विपे) प्राप्त थाय छे (१)। 'मंदरस्सेत्यादि'-अहीं नवाणुं हजार योजनना प्रमाणवाळा मेरुना बे भाग करीए. तेमां पहेलो भाग एकसठ हजारनो कह्यो छे, तथा बीजो भाग पूर्व आडत्रीशमा स्थानकमां आडत्रीश हजार योजननो कह्यो छे, परंतु क्षेत्रसमासमां
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