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संभवे णं अरहा एगूणसद्धिं पुवसयसहस्साई अगारमझे वसित्ता मुंडे जाव पवइए । २।मल्लिस्स णं अरहओ एगूणसटुिं ओहिनाणिसयां होत्था । ३॥ सूत्रम्-५९ ॥ .. मूलार्थः-चंद्र संवत्सरनी एक एक ऋतु ओगणसाठ रात्रिदिवसनी कही छे (१)। श्रीसंभवनाथ अरिहंते ओगणसाठ लाख
हवासमध्ये रहीने पछी मुंड थइ प्रव्रज्या लीधी हती (२)। श्रीमल्लिनाथ अरिहंतने ओगणसाठ सो अवधिज्ञानी हता(३)॥
टीकार्थ:--हवे ओगणसाठमा स्थानक विषे काइक लखे छे-'चंदस्स णं' इत्यादि-स्थानांग विगेरे सूत्रोमां अनेक प्रकारनो संवत्सर कह्यो छे. तेमां चंद्रनी गतिने आश्रीने जे संवत्सर कहेवामां आवे छे ते चंद्र संवत्सर ज कहेवाय छे. तेमां बार मास अने छ ऋतुओ आवे छे. तेमां दरेक ऋतु ओगणसाठ रात्रिदिवसनी होय छे. केवी रीते ? ते कहे छे-ओगणत्रीश रात्रिदिवस अने एक अहोरात्रना साठ भाग करीए एवा बत्रीश भाग, आटला प्रमाणवाळो कृष्ण प्रतिपदाथी आरंभीने शुक्ल पूर्णिमा सुधीनो एक चंद्रमास थाय छ, आ मासने बमणो करवाथी एक ऋतु थाय छे. तेथी आ ऋतुमा ओगणसाठ अहोरात्र आवे छे. अहीं जे बासठीया बे भाग (३) वधारे आवे छे तेनी विवक्षा करी नथी (१)। अहीं संभवनाथ अरिहंतनो गृहस्थपर्याय ओगणसाठ लाख पूर्वनो क यो छे, अने आवश्यकसूत्रमा तो तेथी चार पूर्वांग अधिक कह्यो छे (२)॥ सूत्र-५९॥ - हवे साठK स्थानक कहे छे--
मू०-एगमेगे णं मंडले सूरिए सट्ठिए सद्धिए मुइत्तेहिं संघाइए । १ । लवणस्स णं समु