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समवाय ५९॥
समवाया
चोधु अंग ॥१५॥
टीकार्थ:--अहावनमा स्थानकने विये काइक लखे छे-'पढमेत्यादि'-तेमा पहेली नरकपृथ्वीने विषे त्रीश लाख नरकावासा छे, बीजीमां पचीश लाख अने पांचमी नरकपृथ्वीमांत्रण लाख नरकावासा छे, ते सर्वे मळीने अठ्ठावन लाख थाय छ (१)। 'नाणेत्यादि'-ज्ञानावरणीय कर्मनी पांच, वेदनीयनी बे, आयुनी चार, नामनी ताळीश अने अंतराय कर्मनी उत्तरप्रकृति पांच, ए सर्व मळीने अहावन उत्तरप्रकृति थाय छे (२)। गोथूभस्स'-इत्यादि सूत्रनो भावार्थ पूर्व कह्या प्रमाणे जाणवो. (३) । एज प्रमाणे चारे दिशामा जाणवू, एम कहेवाथी व्रण सूत्रनी भलामण करी छे, ते त्रण सूत्र आ प्रमाणे--दकभास नामना आवास पर्वतनी उत्तर दिशाना छेडाथी केतुक नामना महापातालकळशना वरावर मध्य प्रदेशना भाग सुधी अट्ठावन हजार योजन प्रमाण अबाधाए आंतरं कर्तुं छे (४)। ए ज प्रमाणे शंख नामना आवास पर्वतनी पूर्व दिशाना छेडाथी आरंभीने युप नामना महा पातालकलशनु (५)। तथा ए ज प्रमाणे दकसीम नामना आवास पर्वतनी दक्षिण दिशाना छेडाथी आरंभीने ईश्वर नामना महापातालकलशना बराबर मध्य प्रदेश सुधीनुं अबाधाए आंतरं अट्ठावन हजार योजननुं कहेवु (६)॥ (लवणसमुद्रमा ४२ हजार योजन पछी आवासपर्वतो छ एटले तेनी पछीना ५३००० अने पाताळकळशना मुखना अर्ध भागना ५००० मळी ५८००० थाय छे.) सूत्र-५८॥ . हवे ओगणसाठ{ स्थान कहे छे
मू०-चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे उऊ एगूणसद्धिं राइंदियाइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ता । १।
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