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________________ बावन हजारमां पांच हजार भेळववाथी सत्तावन हजार योजन थाय छे (२) । जीवानुं धनुःपृष्ठ एटले मंडळना खंडना आकारवाळु क्षेत्र. आ सूत्रनो संवाद करनार अर्धगाथा आ प्रमाणे छे - " सत्तावन हजार बसो ने त्राणु योजन तथा उपर दश कळा एटलं धनुःपृष्ठ कह्युं छे " (५) ॥ सूत्र- ५७ ।। हवे अहान स्थानक कहे छे- मू० - पढमदोच्चपंचमासु तिसु पुढवीसु अट्ठावन्नं निरयावास सय सहस्सा पन्नत्ता । १ । नाणावरणिजस्स वेयणियआउयनामअंतराइयस्स एएसि णं पंचण्हं कम्मपगडीणं अट्ठावन्नं उत्तरपगओ पन्नताओ | २ | गोथूभस्स णं आवासपवयस्स पञ्चच्छिमिलाओ चरमंताओ वलयामुहस्स महापायास्स बहुमज्झदेसभाए एस णं अट्ठावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । ३ । एवं चउदिसिं पि नेवं । ४-५-६ ॥ सूत्रम् - ५८ ॥ मूलार्थ:-- पहेली, बीजी अने पांचमी ए त्रण नरकपृथ्वीने विषे अठ्ठावन लाख नरकावासा का छे (१) । ज्ञानावरणी, वेदनीय, आयु, नाम अने अंतराय ए पांच (मूळ) कर्मप्रकृतिनी अठ्ठावन उत्तरप्रकृतिओ कही छे (२) । गोस्तूभ नामना आवास पर्वती पश्चिम दिशाना छेडाथी आरंभीने वडवामुख नामना महापातालकळशना बराबर मध्यभाग सुधी अठावन हजार योजन प्रमाण अबाधाए आंतरुं कह्युं छे (३) । ए ज प्रमाणे चारे दिशामां जाणवुं (४-५-६) ॥ २६
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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