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| इच्छथु नथी एम संभवे छे. 'जाव' शब्द कह्यो छ माटे बुद्ध, मुक्त, अंतकृत, परिनिर्वृत अने सर्व दुःखपहीण ए सर्व || विशेषणो जाणवा (१)।'जंबूद्वीपस्य' इत्यादि सूत्रमा पुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ त्ति'--जग परिधिना छेडाथी नीकळीने वेलंधर नागराजना गोस्तूभ नामना आवास पर्वतना पश्चिम दिशाना छेडा सुधी जेटलं आंतरं छे, ' एस णं'--ते आंतरूं उताळीश हजार योजन- कयुं छे. 'अंतर' शब्दवडे करीने (शब्दनो अर्थ) विशेष पण कहेवाय छे, तेथी का के-'अबाहाए त्ति'-व्यवधाननी अपेक्षाए जे अंतर होय ते अर्थात् जंबूद्वीपनी जगतीथी ४२००० योजन दर ए चारे द्वीपो छे. (२)। 'कालोए णं त्ति'--धातकी खंडने वींटीने रहेला कालोद नामना समुद्रने विषे (४)। 'गइनामेत्यादि'--जे( नामकर्म )ना उदयथी जीव नारकादिकपणाए करीने करवामां आवे छे ते गतिनाम १, जेना उदयथी एकेंद्रियादिक थाय छे, ते जातिनाम २, जेना उदयथी औदारिकादिक शरीरने करे छे ते शरीरनाम ३, जेना उदयथी मस्तकादिक अंगोनो अने अंगुल्यादिक उपांगोनो विभाग थाय छे ते शरीरांगोपांगनाम कहेवाय छे ४, तथा पूर्व बांधेला अने ( वर्तमानकाळे ) बंधाता औदारिकादिक शरीरना पुद्गलोनो संबंध करवानुं जे कारण छे ते शरीरबंधननाम ५, तथा ग्रहण करेला औदारिकशरीरना पुद्गलोनी जेना उदयथी शरीररूपे रचना थाय, ते शरीरसंघातनाम ६, तथा जेना उदयथी हाडकांओनी तथाप्रकारनी शक्तिना कारणरूप विशेष रचना थाय, ते संहनननाम ७, | जेना उदयथी समचतुरस्र विगेरे संस्थान थाय, ते संस्थान नाम ८, तथा जेना उदयथी वर्णादिक (वर्ण. गंध. विशेषवाळां शरीर थाय, ते वर्णादिकनाम ( वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम ) कहेवाय छे ९-१२, तथा जेना उद