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समवाय ४२॥
श्री यथी जीवोने पोताना शरीरर्नु अगुरुलघुपणुं थाय छे, ते अगुरुलघुनाम १३, तथा जेनाथी पडिजीभी विगेरे अंगनो अवयव समवायाङ्ग पोताने ज उपघात करनार थाय छे, ते उपघातनाम १४, तथा जेनाथी पोताना दाढ, चामडी विगेरे अंगना अवयव विष
स्त्र ॥ जेवा थइने बीजाने स्पर्शादिथी उपघात करनार थाय ते पराघातनाम १५, तथा जेना उदयथी अंतराल गतिने विपे चोधू अंग
(एक भवथी वीजा भवने विषे) जीव जाय छे, ते आनुपूर्वीनाम १६, तथा जेना उदयथी उच्छ्वास अने निःश्वास
( श्वासोच्छ्वास )नी प्राप्ति थाय छे (सुखे लेवाय छे) ते उच्छ्वास नाम १७, तथा जेना उदयथी जीव तापनी ॥१३८॥
जेवा उष्ण शरीरवाळो थाय ते आतपनाम. ते सूर्यबिंबमा रहेला पृथ्वीकायने होय छे १८, तथा जेना उदयथी उष्णता रहित उद्योतवालं शरीर थाय, ते उद्योतनाम १९, तथा जेना उदयथी शुभ अने अशुभ गमनवाळो थाय, ते विहायोगति नाम २०, स विगेरे आठ नाम प्रसिद्ध अर्थवाळा छे २८, तथा जेनाथी स्थिर एवा दांत विगेरेनी उत्पत्ति थाय, ते
स्थिरनाम २९, तथा जेनाथी भृकुटि, जिह्वा विगेरे अस्थिर अवयवोनी उत्पत्ति थाय, ते अस्थिरनाम ३०, एज प्रमाणे • मस्तक विगेरे शुभ अवयवोनी उत्पत्ति थाय, ते शुभनाम ३१, पादादिक अशुभनी उत्पत्ति थाय, ते अशुभनाम ३२, शेष
नाम प्रसिद्ध छे ३३ थी ४२ तेमां विशेष ए के-जेना उदयथी जन्म जन्मने विपे जीवना शरीरमा स्त्री विगेरे लिंगनो ( आकार नियमित थाय, ते सूत्रधार (सुथार ) जेवू निर्माणनाम कहेवाय छे (६)। अवसर्पिणीनो पांचमो अने छठो आरो
ते दुष्पमा अने एकांत दुष्पमा नामनो जाणवो (९)। उत्सर्पिणीनो पहेलो अने बीजो आरो ते एकांत दुष्पमा अने दुष्षमा नामनो जाणवो (१०) ॥ सूत्र-४२॥
॥१३८॥