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________________ साहारणसरीरनामे २७, पत्तेयसरीरनामे २८, थिरनामे २९, अथिरनामे ३०, सुभनामे ३१, असुभनामे ३२, सुभगनामे ३३, दुब्भगनामे ३४, सुसरनामे ३५, दुस्सरनामे ३६, आएजनामे ३७, अणाएजनामे ३८, जसोकित्तिनामे ३९, अजसोकित्तिनामे ४०, निम्माणनामे ४१, तित्थकरनामे ४२ । ६ । लवणे णं समुद्दे बायालीसं नागसाहस्सीओ अभितरियं वेलं धारंति । ७ । महालियाए णं विमाणपविभत्तीए वितिए वग्गे बायालीसं उद्देसणकाला पन्नत्ता । ८। एगमेगाए ओसपिणीए पंचमछट्ठीओ समाओ बायालीसं वाससहस्साइं कालेणं पन्नत्ताई।९। एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढमबीयाओ समाओ बायालीसं वाससहस्साइं कालेणं पन्नत्ताई । १०॥ सूत्रम्-४२॥ ... मूलार्थः-श्रमण भगवान महावीरस्वामी काइक अधिक बेंताळीश वर्ष चारित्रपर्याय पाळीने सिद्ध थया, यावत् सर्व दुःख रहित थया (१)। जंबूद्वीप नामना द्वीपनी पूर्व दिशाना छेडाथी एटले जगतीथी लइने गोस्तुभ नामना आवास पर्वतनी पश्चिम दिशाना छेडा सुधी बेंताळीश हजार योजन- अवाधाए (निरंतर) आंतरं कह्यु छ (२)। एज प्रमाणे, चारे दिशामां दकभास, शंख अने दकसीम पर्वतर्नु पण आंतरं कहे, (३)। कालोद नामना समुद्रने विषे बेंताळीश चंद्रो प्रकाश करता हता, प्रकाश करे छे अने प्रकाश करशे, ते ज प्रमाणे बेताळीश सूर्यो तपता हता, तपे छे अने तपशे (४)
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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