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________________ समवायाज पोधु अंग ॥१३६॥ - मू०-समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता | समवाय सिद्धे जाव सबदुक्खप्पहीणे । १ । जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्सा ४२ ॥ णं आवासपवयस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहातो अंतरं पन्नत्तं । २। एवं चउद्दिसि पि दोभासे संखोदयसीमे य । ३ । कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा बायालीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा । ४ । संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता ।५॥ नामकम्मे बायालीसविहे पन्नत्ते, तं जहा-गइनामे १, जाइनामे २, सरीरनामे ३, सरीरंगोवंगनामे ४, सरीरबंधणनामे ५, सरीरसंघायणनामे ६, संघयणनामे ७, संठाणनामे ८, वपणनामे ९, गंधनामे १०, रसनामे ११, फासनामे १२, अगुरुलहुयनामे १३, उवघायनामे १४, पराघायनामे १५, आणुपुबीनामे १६, उस्सासनामे १७, आयवनामे १८, उज्जोयनामे १९, विहगगइनामे २०, तसनामे २१, थावरनामे २२, सुहुमनामे २३, बायरनामे २४, पज्जत्तनामे २५, अपजत्तनामे २६,
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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