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विषयानुक्रम॥
समवायाङ्ग
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घोडुं अंग ॥११॥
योजन दूर छे ) एज प्रमाणे वीजी त्रण दिशामां दकभास, | शाना छेडा सुधीमा ( जगतीथी ४२००० योजन दूर अने शंख अने दकसीम पर्वतर्नु पण आंतरं समजबू, कालोद १०२२ योजननो उपर विष्कंभ होवाथी) तेंताळीश हजार नामना समुद्रमां बेंताळीश चंद्र अने बेंताळीश सूर्य छ, संमू- योजननु आंतरुं छे, ए ज प्रमाणे बीजी त्रण दिशामां दकछिम भुजपरिसर्पनी उत्कृष्ट स्थिति बेंताळीश हजार वर्षनी भास, शंख अने दकसीम पर्वतर्नु पण आंतरं छे, महालिकाविछे, नामकर्म बेताळीश प्रकारचें छे, लवणसमुद्रमां घेताळीश मानप्रविभक्तिना वीजा वर्गना तेंताळीश उद्देशन काळ कया छे. हजार नागदेवता आभ्यंतर वेळाने धारण करे छे, महलियावि- (४४) ऋपिभापितना चुमाळीश अध्ययनो छे, मानप्रविभक्तिना बीजा वर्गमां बेताळीश उद्देशन काळ कह्या विमळनाथ प्रभुना चुमाळीश पुरुषयुग अनुक्रमे सिद्ध थया छ, छे, दरेक अवसर्पिणीनो पांचमो अने छठ्ठो आरो मळीने तथा । धरणेंद्र नागराजना चुमाळीश लाख भवनो छे, महालिकाविदरेक उत्सर्पिणीनो पहेलो अने बीजो आरो मळीने बेंताळीश | मानप्रविभक्तिना चोथा वर्गमा चुमाळीश उद्देशन काळ छे. हजार वर्षना होय छे.
(४५) अढीद्वीपनो आयामविष्कंभ पीस्ताळीश .. (४३) पुण्यपापरूप कर्मविपाकने दर्शावनारा तेंता- । लाख योजननो छे, सीमंतक नामना नरकावासनो आयाम ळीश अध्ययनो कह्या छे, पहेली, चोथी अने पांचमी विष्कंभ पीस्ताळीश लाख योजननो छे, एज प्रमाणे पहेला पृथ्वीना मळीने तेंताळीश लाख नरकावासा छे, आ जंबू- देवलोकनुं उडु नामर्नु मध्य विमान तथा ईपत्प्राग्भार नामनी द्वीपनी पूर्वदिशाना छेडाथी गोस्तूभ नामना पर्वतनी पूर्वदि- | पृथ्वी पण ४५ लाख योजन प्रमाण जाणवी. धर्मनाथ प्रभु