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विषयानुक्रम॥
समवायाङ्ग
घोषू अंग
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जीवो तेत्रीश भवे सिद्ध थशे.
(३६) उत्तराध्ययन सूत्रना छत्रीश अध्ययनो छे, (३४) तीर्थकरने चोत्रीश अतिशयो होय छे, आ | चमर नामना असुरेंद्रनी सुधर्मा नामनी सभा छत्रीश योजन जंबूद्वीपमा चक्रवर्तीना चोत्रीश विजयो छे, तेमां चोत्रीश ऊंची छे, महावीरस्वामीने छत्रीश हजार साध्वीओनी संपदा दीर्घवैताढ्य पर्वतो छ, अने ते द्वीपमा उत्कृष्टथी चोत्रीश तीर्थ- हती, चैत्र अने आश्विन मासमा पोरसीनी छाया छत्रीश करो उत्पन्न थाय छे, चमर नामना असुरेंद्रना चोत्रीश लाख अंगुलनी होय छे. भवनो छे, पहेली, पांचमी, छठ्ठी अने सातमी ए चारे (३७) कुंथुनाथ प्रभुने साडतीश गणधरो हता, हैमपृथ्वीना मळीने कुल चोत्रीश लाख नरकावासा छे. वत अने औरण्यवतनी जीवा साधिक साडत्रीश हजार योज. (३५) सत्य वचनना (तीर्थकरनी वाणीना ) ननी छे, विजय, वैजयंत, जयंत अने अपराजित नामना अतिशयो पांत्रीश छे, कुंथुनाथ प्रभु पांत्रीश धनुष ऊंचा | द्वारपाळनी राजधानीओना किल्ला साडत्रीश साडनीश योजन हता, दत्त नामना वासुदेव तथा नंदन नामना बळदेव पांत्रीश ऊंचा छे, क्षुद्रिकाविमानप्रविभक्ति नामना कालिकश्रुतना धनुप ऊंचा हता, सौधर्म कल्पमा सुधर्मा नामनी सभामां माण- पहेला वर्गमां साडनीश उद्देशन काळ कह्या छे, कार्तिक वदि वक नामनो चैत्यस्तंभ छे तेना मध्यना पांत्रीश योजनमा रहेला । सातमने दिवसे पोरसीनी छाया साडत्रीश अंगुलनी होय छे. वज्रमय गोल दाभडाने विपे जिनेश्वरोनी दाढाओ छे, बीजी | (३८) पार्श्वनाथ प्रभुने आडनीश हजार साध्वीअने चोथी पृथ्वीना मळीने पांत्रीश लाख नरकावासा छे. | ओनी संपदा हती, हैमवंत अने अरण्यवंत क्षेत्रनी जीवाचें
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