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सूर्य, चंद्र, (ज्योतिषीना २) शक्र, ईशान, सनत्कुमार, यावत् प्राणत, अच्युत (वैमानिकना १०) (२)। कुंथुनाथ अरिहंतने बत्रीश सो बत्रीश केवळीओ हता (३)। सौधर्म कल्पने विपे बत्रीश लाख विमानो कह्या छे (४)। रेवति नक्षत्रना बावीश तारा कह्या छे (५) बत्रीश प्रकारचें नाट्य कयुं छे ॥६॥
. आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी बत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। नीचे सातमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी बत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी बत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (३)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी बत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (४)। जे देवो विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित विमानोमां देवपणे उत्पन्न थया होय, तेमां केटलाक देवोनी बत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (५)॥
ते देवो बत्रीश अर्धमास ( पखवाडिये ) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने बत्रीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक (भव्य) जीवो छ के जेओ ना बत्रीश भव ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे, अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे ॥ (३)॥
टीकार्थ-बत्रीशमं स्थानक पण प्रगट छे. विशेष एके-जे जोडाय ते योग कहेवाय छ एटले के मन, वचन, Kel कायाना व्यापार. ते योग अहीं प्रशस्त ज कहेवाने इच्छया छे. ते योगो शिष्य अने आचार्य ए बन्नेने विषे रहेला होय छे..
१ लोकप्रकाशमां ३२०० कह्या छे.