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विषयानुक्रम ॥
समवायाङ्ग
चोy अंग
पृथ्वीमां त्रीश लाख नरकावास छे. रत्नप्रभा पृथ्वीमा केट- | साधिक एकत्रीश रात्रिदिवस होय छे, सूर्यमास कांइक न्यून | लाक नारकीओनी त्रीश पल्योपमनी स्थिति छे, सातमी एकत्रीश रात्रिदिवसनो होय छे, रत्नप्रभा पृथ्वीमां केटलाक पृथ्वीमा केटलाक नारकीओनी त्रीश सागरोपमनी स्थिति छे, नारकीओनी एकत्रीश पल्योपमनी स्थिति छे, सातमी पृथ्वीमा केटलाक असुरकुमार देवोनी त्रीश पल्योपमनी स्थिति छे, केटलाक नारकीओनी एकत्रीश सागरोपमनी स्थिति छ, केट( सौधर्म ईशानना कोइ देवोनी स्थिति पण उपलक्षणथी लाक असुरकुमार, सौधर्म अने ईशान कल्पना देवोनी एकसमजी लेवी ) नवमा अवेयकमां जघन्य स्थिति त्रीश साग- त्रीश पल्योपमनी स्थिति छे, विजय, वैजयंत, जयंत अने रोपमनी छे, आठमा अवेयकमां उत्पन्न थयेला देवोनी उत्कृष्ट अपराजित विमानना देवोनी जघन्य स्थिति एकत्रीश सागस्थिति त्रीश सागरोपमनी छे, ते देवो त्रीश पखवाडीए श्वास रोपमनी छे, नवमा अवेयकमा उत्पन्न थयेला देवोनी उत्कृष्ट ले छे अने त्रीश हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केटलाक भव्य स्थिति एकत्रीश सागरोपमनी छे, ते देवो एकत्रीश पखवाडीए जीवो त्रीश भवे सिद्धिपद पामवाना होय छे.
श्वास ले छे अने एकत्रीश हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केट. (३१) सिद्धोना एकत्रीश गुणो पण कह्या छ, मेरु- लाक भव्य जीवो एकत्रीश भववडे मोक्ष पामशे.. पर्वतनो पृथ्वीतळ उपरनो परिधि साधिक एकत्रीश हजार (३२) बत्रीश योगसंग्रह छे ते खास जाणवा योग्य योजननो कह्यो छे, बाह्यमंडळे वर्ततो सूर्य साधिक एकत्रीश | छे, देवेंद्रो वत्रीश छे, ( आमां व्यतरना ३२ इंद्रो गण्या हजार योजन दूरथी जोवामां आवे छे, अधिक मासमां । नथी) कुंथुनाथ प्रभुने बत्रीश सो ने बत्रीश केवळीओ हता,