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समवाय २९॥
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श्री (अभ्यास) ते पापश्रुतप्रसंग कहेवाय छे, ते पापश्रुतप्रसंग ओगणत्रीश प्रकारनां पापश्रुत होवाथी तेटला (ओगणत्रीश) समवायाङ्गप्रकारनो कह्यो छे. पापश्रुतनो विषय होवाथी ते पापश्रुत ज कहेवाय छे. आ कारणथी ज कहे छ के-'ओमेत्यादि
तेमा भौम एटले भूमिना विकार( कंप विगेरे )ना फळने कहेनारु जे निमित्तशास्त्र १, तथा उत्पात एटले सहज (स्वाभाचोधुं अंग विक रीते आकाशथी) रुधिरनी वृष्टि विगेरे लक्षणवाळा उत्पातना फळने कहेनारुं निमित्तशास्त्र २, एज प्रमाणे स्वप्न
। एटले स्वप्नना (शुभाशुभ ) फलने प्रगट करनारुं शास्त्र ३, अंतरिक्ष एटले आकाशमां उत्पन्न थता ग्रहोना युद्धना प्रकार ॥१०४॥
विगेरे फळने जणावनारुं शास्त्र ४, अंग एटले शरीरना अवयवोनुं प्रमाण तथा तेनुं फरकवू विगेरे विकाररूप फळने जणावनालं
शास्त्र ५, स्वर एटले जीव अने अजीवने आश्रित स्वर(शब्द)ना स्वरूपने तथा तेना फळने कहेनारुं शास्त्र ६, व्यंजन एटले तिल, मसा विगेरे व्यंजनना फळने जणावनारुं शास्त्र ७ तथा लक्षण एटले लांछन विगेरे अनेक प्रकारना लक्षणने जणावनारं शास्त्र ८, आ प्रमाणे आठ शास्त्रो छे, आ आठ शास्त्रो सूत्र, वृत्ति (टीका) अने वार्तिकना भेदथी चोवीश प्रकारना थाय छे. तेमां एक अंग सिवाय बाकीनां शास्त्रोनुं सूत्र एक हजार(श्लोक)ना प्रमाणवाडं छे, तेनी वृत्तिनुं प्रमाण एक लाख ( श्लोकर्नु) छे, तेनी वृत्तिनुं व्याख्यानरूप वार्तिक एक कोटिश्लोकप्रमाणनुं छे, तथा अंगशास्त्रनुं सूत्र लक्ष प्रमाण छे, वृत्ति कोटि प्रमाण छे अने वार्तिक अपरिमित छे. आ आठेना त्रण त्रण प्रकार मळीने कुल चोवीश प्रकार थया
२४, तथा विकथानुयोग एटले अर्थ अने कामना उपायने कहेनारा कामंदक अने वात्स्यायन विगेरे (ग्रंथो) अथवा MI भारत विगेरे शास्त्रो २५, तथा विद्यानुयोग एटले रोहिणी विगेरे विद्याना साधनने कहेनारा शास्रो २६, तथा मंत्रानु
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