________________
BC
(५)। फाल्गुन मास (६)। वैशाख मास (७)। चंद्रमासनो दिवस मुहूर्त्तनी अपेक्षाए कहीए तो कांइक अधिक
ओगणत्रीश मुहर्तनो कह्यो छे (८)। प्रशस्त अध्यवसायवाळो सम्यग्दृष्टि भव्य जीव नामकर्मनी तीर्थकरनाम सहित का ओगणत्रीश उत्तर प्रकृतिओने बांधीने अवश्य वैमानिक देवोने विपे देवपणे उत्पन्न थाय छे (९)॥ - आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विपे केटलाक नारकीओनी ओगणत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। नीचे सातमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी ओगणत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी ओगणत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (३) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी ओगणत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छ (४)। उवरिममज्झिम नामना आठमा अवेयकना देवोनी जघन्य स्थिति ओगणत्रीश सागरोपमनी कही छे (५)। जे देवो उपरिमहेठिम नामना ७ मा गैवेयक विमानोमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति ओगणत्रीश सागरो| पमनी कही छे (६)॥
ते देवो ओगणत्रीश अर्धमासे (पखवाडीए) आन ले छ, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१) । ते देवोने ओगणत्रीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छ के जेओ ओगणत्रीश भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३) ॥ सूत्र-२९॥
टीकार्थः-ओगणत्रीशमुं स्थानक पण प्रगट ज छे. विशेष ए के--अहीं स्थितिनां सूत्रोनी पहेला नव सूत्रो छे. तेमां पापना उपादान कारणरूप जे शास्त्रो ते पापश्रुत कहेवाय छे, ते शास्त्रोनो जे प्रसंग एटले तथाप्रकारनी तेनी सेवा