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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
अंग
॥ ८ ॥
पखवाडी श्वास ले छे अने छवीश हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केटलाक भव्य जीवो छवीश भवे सिद्ध थशे.
(२७) साधुना सत्तावीश गुणो छे, आ जंबूद्वीपमां अभिजित् सिवाय बाकीना सत्तावीश नक्षत्रोवडे व्यवहार चाले छे, एक एक नक्षत्रमासना सत्तावीश सत्तावीश दिवसो 'होय छे, सौधर्म अने ईशान कल्पनी पृथ्वी सत्तावीश सो योजन जाडी छे, वेदक समकितना बंधथी विराम पामेला ( उद्वलनावाळा ) जीवने मोहनीय कर्मनी सत्तावीश उत्तरप्रकृतिओ सत्तामां होय छे, श्रावण शुदि सातमने दिवसे सत्तावीश अंगुल सूर्यनी छाया थाय त्यारे पोरसी थाय छे, रत्नप्रभा पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी सत्तावीश पल्योपमनी स्थिति छे, सातमी पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी सत्तावीश सागरोपमनी स्थिति छे, केटलाक असुरकुमार, सौधर्म अने ईशानना देवोनी सत्तावीश पल्योपमनी स्थिति
छे, छठ्ठा मैवेयकमां जघन्य स्थिति सत्तावीश सागरोपमनी छे, पांचमा मैवेयकमां उत्पन्न थयेला देवोनी उत्कृष्ट स्थिति सत्तावीश सागरोपमनी छे, ते देवो सत्तावीश पखवाडीए श्वास ले छे अने सत्तावीस हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केटलाक भव्य जीवो सत्तावीश भवे सिद्ध थशे.
( २८ ) साधुनो आचारप्रकल्प अठ्ठावीस प्रकारनो कह्यो छे, केटलाक भव्यजीवोने मोहनीयकर्मनी अठ्ठावीश प्रकृतिओ सत्तामां होय छे, मतिज्ञानना अठ्ठावीश प्रकार छे, ईशान कल्पमां अठ्ठावीस लाख विमानो छे, देवगतिने बांधतो जीव नामकर्मनी अठ्ठावीश उत्तरप्रकृतिओने बांधे छे, रत्नप्रभा पृथ्वीमा केटलाक नारकी ओनी अठ्ठावीश पल्योपमनी स्थिति छे, सातमी पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी अठ्ठावीश सागरोपमनी स्थिति छे, केटलाक असुरकुमार, सौधर्म अने ईशानना देवोनी अठ्ठावीश पल्योपमनी स्थिति छे, सातमा मैवेयक
विषयानु
क्रम ॥
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