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.श्रीमल्लिनाथ प्रभु पचीश धनुष ऊंचा हता, सर्वे दीर्घवैताढ्य । नामना चोथा अवेयकना देवोनी जघन्य स्थिति पचीश साग़पर्वतो पचीश योजन ऊंचा तथा पचीश गाउ पृथ्वीमां ऊंडा रोपमनी छे, हेठिमउवरिम नामना त्रीजा अवेयकमा उत्पन्न छे, बीजी नरक पृथ्वीमां पचीश लाख नरकावासा छे, आचा- थयेला देवोनी उत्कृष्ट स्थिति पचीश सागरोपमनी छे, ते रांग सूत्रमा चूलिका सहित पचीश अध्ययनो छे, अपर्याप्त देवो पचीश पखवाडीए श्वास ले छे अने पचीश हजार वर्षे | अवस्थावाळो अने संक्लिष्ट परिणामवाळो विकलेंद्रिय मिथ्या- आहार इच्छे छे. केटलाक भव्य जीवो पचीश भवे सिद्ध थशे. दृष्टि जीव नामकर्मनी पचीश उत्तरप्रकृतिओ बांधे छे, गंगा (२६) दशाश्रुत, कल्पश्रुत अने व्यवहारश्रुतना अने सिंधु नामनी तथा रक्ता अने रक्तवती नामनी महा- मळीने छवीश उद्देशन काळ कह्या छे, अभव्य जीवोने मोहनदीओ पचीश गाउना पहोळा प्रवाहवडे पूर्व पश्चिम दिशामा । नीय कर्मनी छवीश प्रकृतिओ सत्तामां होय छे, रत्नप्रभा पोतपोताना प्रपातकुंडमां पड़े छे, लोकबिंदुसार नामना |
पृथ्वीमा केटलाक नारकीओनी छवीश पल्योपमनी स्थिति छे, चौदमा पूर्वमा पचीश वस्तुओ कही छे. रत्नप्रभा नामनी
सातमी पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी छवीश सागरोपमनी पृथ्वीमा केटलाक नारकीओनी पचीश पल्योपमनी स्थिति
स्थिति छे, केटलाक असुरकुमार, सौधर्म अने ईशानना देवोनी का छे, सातमी पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी पचीश सागरो
छवीश पल्योपमनी स्थिति छ, पांचमा ग्रैवेयकमां जघन्य पमनी स्थिति छ, केटलाक असुरकुमार तथा सौधर्म अने । स्थिति छवीश सागरोपमनी छे, चोथा ग्रैवेयकमां उत्पन्न थयेला ईशानना देवोनी पचीश पल्योपमनी स्थिति छे, मज्झिमहेट्रिम | देवोनी उत्कृष्ट स्थिति छवीश सागरोपमनी छे, ते देवो छवीश