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________________ तेसि णं देवाणं छव्वीस वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ । २ । संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे छव्वीसेहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिवाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ३ ॥ सूत्रम् - २६ ॥ मूलार्थ:- दशाश्रुत, कल्पत अने व्यवहारश्रुतना मळीने छवीश उद्देशन काळ कला छे, ते आ प्रमाणे दशाश्रुतना दश, कल्पसूत्रना छ अने व्यवहारश्रुतना दश (१) अभवसिद्धिक एटले ( कोइ पण भवमां जेनी सिद्धि थवानी नथी तेवा ) अभव्य जीवोने मोहनीय कर्मनी छवीस कर्मप्रकृतिओ सत्तामा रहेली कही छे, ते आ प्रमाणे - मिथ्यात्वमोहनीय १, सोळ कषाय १७, स्त्रीवेद १८, पुरुषवेद १९, नपुंसकवेद २०, हास्य २१, अरति २२, रति, २३, भय २४, शोक २५ अने दुर्गा (जुगुप्सा) (रूप नव नोकषाय.) २६ ( २ ) ॥ आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी छवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( १ ) । नीचेनी सातमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी छवीश सागरोपमनी स्थिति कही छे ( २ ) । केटलाक असुरकुमार देवोनी छवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ३ ) सौधर्म अने ईशान कल्पना केटलाक देवोनी छवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ४ ) मज्झिममज्झिम नामना पांचमा ग्रैवेयकना देवोनी जघन्य स्थिति छवीश सागरोपमनी कही छे (५) । जे देवो मज्झिमहिम १ दशाश्रुतस्कंध २ बृहत्कल्प ।
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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