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भी, समवायाङ्ग
बोधू अंग
मग
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हेडिममज्झिम नामना बीजा ग्रैवेयक विमानमा देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति चोवीश सागरोपमनी
समवाय N कही छे (६)॥
२४॥ ते देवो चोवीश अर्धमासे (पखवाडीए) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छास ले छे, निःश्वास ले छ (१)। ते देवोने चोवीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छ के जेओ चोवीश भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे, अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥
टीकार्थ:-आ चोवीश स्थानकने विषे स्थितिनी पहेलो छ सूत्रो कहेला छे, अने ते सुगम पण छे, विशेष ए छे के इंद्रादिक देवोनी मध्ये जे पूज्यपणाने लीधे अधिक होय ते देवाधिदेव कहेवाय छे (१) । तथा 'जीवाओ ति 'जंबूद्वीपरूपी वृत्त (गोळ) क्षेत्रने मध्ये जे वर्षो (क्षेत्रो) अने वर्षधरो ( पर्वतो) रहेला होय तेनी सीधी सीमानुं नाम जीवा कहेवाय छ. धनुष उपर प्रत्यंचा चडावेली होय ते जीवानी सदृश आ पण होवाथी जीवा कहेवाय छे. तेमां चुल्लहिमवंत अने शिखरी ए वे पर्वतनी जीवातुं प्रमाण २४९३२ योजन अने एक योजननो आडत्रीशमो भाग काइक अधिक छे. आ प्रमाणने माटे गाथा कही छे तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. “ चोवीश हजार नव सो ने बत्रीश योजन तथा अर्धी कळा एटली लांबी क्षुल्लहिमवंतनी जीवा छे." अहीं अर्थी कळा एटले ओगणीशीया भागनो अर्धभाग, ते आडत्रीशमो भाग ज कहेवाय छे (२)। देवना स्थानो एटले भेदो चोवीश आ प्रमाणे-भवनपतिना दश, व्यंतरना आठ, ज्योतिष्कना पांच अने कल्पोपपन्ना वैमानिक देवोनुं एक स्थान, ए सर्व मळीने चोवीश थया. आ चोवीश स्थानो इंद्र सहित एटले चमरेंद्र विगेरेवडे अधिष्ठित ॥८९
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