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________________ छे, बाकीना एटले नव ग्रैवेयक अने पांच अनुत्तर विमानना देवो ते अहमिंद्र कहेवाय छे. तेओ पोते ज इंद्र छे, तेने माथे । इंद्र नथी. तेमना स्थानो ते अहमिंद्र स्थानो छ अर्थात् ते दरेक देवो पोताना आत्माने इंद्र माननारा छे. तेथी करीने ज ते स्थानो इंद्र रहित एटले नायक रहित छ, तथा शांतिकर्मने करनारा पुरोहित रहित छे, उपलक्षणथी सेवकजनो (आभियोगिक देवो) विगेरे काइपण नथी. एम जाणवू (३)। तथा उत्तरायणमा रहेलो एटले कर्क संक्रांतिने दिवसे सर्व आभ्यंतर || मंडळमां रहेलो सूर्य एक हस्तप्रमाण शंकुनी चोवीश अंगुलप्रमाण पोरिसीनी छायाने करीने पाछो फरे छे एटले सर्व आभ्यंतर मंडळथी नीकळीने बीजा मंडळमां आवे छे. ते विपे कमु छ के-" आषाढ मासमां वे पगलानी छाया, (पोरिसी कहेवाय N) छे). " इत्यादि. (४)। 'पवहे '-जे स्थानथी नदी वहेवा लागे छे, ते प्रवाह अहीं पद्मद्रहथकी तेना तोरणवडे करीने तेनी नीचे थइने तेनो निर्गम संभवे छे. परंतु अन्य स्थळे प्रवह शब्दे करीने जे मकरना मुखनी प्रनाळमाथी नीकळवू थाय छै ते अथवा प्रपातकुंडमांथी जे नीकळवू थाय छे, ते प्रवाह कहेल छे ते अहीं कहेवाने इच्छथो नथी. केम के जंबुद्वीपप्रज्ञप्तिमा अने अहींआं पण आगळ पचीश कोशना प्रमाणवाळो गंगादिक नदीओनो प्रवाह कहेलो छे. (५-६)॥ सूत्र-२४ ॥ हवे पचीशमुं स्थानक कहे छ. मूल-पुरिमपच्छिमगाणं तित्थगराणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाओ पण्णत्ता, तं जहाईरियासमिई, मणगुत्ती, वययुत्ती, आलोयभायणभोयणं, आदाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई ५,
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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