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सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । ३॥ सूत्रम्-२४ ॥ . _मूलार्थः-चोवीश देवाधिदेवो ( तीर्थंकरो) कह्या छ, ते आ प्रमाणे--ऋषभ १, अजित २, संभव ३, अभिनंदन ४, सुमति ५, पद्मप्रभ ६, सुपार्श्व ७, चंद्रप्रभ ८, सुविधि ९, शीतळ १०, श्रेयांस ११, वासुपूज्य १२, विमल १३,
२०, नमि २१, नेमि २२, पार्श्व २३ अने वर्धमान २४ (१)। क्षुल्लहिमवंत अने शिखरी ए वे वर्षधर पर्वतोनी जीवा लंबाइमां चोवीश हजार नव सो ने बत्रीश | योजन तथा एक योजननो आडत्रीशमो भाग काइक अधिक कही छे (२)। देवोना चोवीश स्थानो इंद्र सहित कहेला | छे, बाकीना स्थानो अहमिंद्रवाळा, इंद्र रहित अने पुरोहित (विगेरे) रहित कहेला छ (३)। उत्तरायणमां रहेलो सूर्य
चोवीश अंगुल प्रमाण पोरसीनी छायाने करीने पाछो वळे छे (४)। गंगा अने सिंधु नामनी मोटी नदीओ प्रवाहने ना स्थाने काइक अधिक चोवीश कोश (गाउ) विस्तारमा कही छे (५)। रक्ता अने रक्तवती नामनी मोटी नदीओ प्रवाहने | स्थाने काइक अधिक चोवीश कोश (गाउ) विस्तारमा कही छे (६)॥ ___ आ रत्नप्रभा नामनी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी चोवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। नीचे सातमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी चोवीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी चोवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (३)। सौधर्म अने ईशान देवलोकमां केटलाक देवोनी चोवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (४)। हेछिमउवरिम नामना त्रीजा ग्रैवेयकमां देवोनी जघन्य स्थिति चोवीश सागरोपमनी कही छे (५)। जे देवो
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