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समवायाङ्ग सूत्र ॥
चोथुं अंग
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सूचन करनार होवाथी सूत्र कहेवाय छे. 'छिन्नच्छेयणइयाई ति ' - अहीं जे नय छेदवडे करीने छिन्ने सूत्रने इच्छे छे, एटले के जैम " धम्मो मंगलमुक्किहं " इत्यादि ( कोइ एक ) लोक सूत्र अने अर्थथकी छेदनयमां रह्यो सतो बीजा, त्रीजा विगेरे श्लोकनी अपेक्षा करतो न होय, आवी रीतना जे सूत्रो छिन्नच्छेदनयवाळां होय ते छिन्नच्छेदनयिक कहेवाय छे. आवां सूत्रो स्वसमय एटले जिनमतने आश्रय करनारी जे सूत्रोनी परिपाटि एटले पद्धति, तेने विपे अथवा तेणे करीने होय छे ( २ ) तथा ' अच्छिन्नच्छेयनइयाई ति ' - अहीं जे नय अच्छिन्न सूत्रने छेदवडे इच्छे छे; ते अच्छिन्नच्छेदनय कहेवाय छे जेमके' धम्मो मंगलमुकिहं' इत्यादिक श्लोक अर्थथकी वीजा, त्रीजा आदि लोकनी अपेक्षा करतो होय तेवी रीतनां जे सूत्रो अच्छिन्नछेदनयवाळां होय ते अच्छिन्नच्छेदनयिक कहेवाय छे. आवां सूत्रो आजीविक सूत्रनी परिपाटिने विषे एटले गोशालकना मतना कहेलां सूत्रोनी पद्धतिने विपे अथवा ते पद्धतिए करीने होय छे, अर्थात् आ सूत्रो अक्षरनी रचनावडे जुदा रहेला होय छे एटले के अक्षरोनी रचना जुदी जुदी होय छे तो पण अर्थथकी परस्परनी अपेक्षा राखनारां होय छे ( ३ ) तथा ' तिकणइयाई ति - जे सूत्रो त्रण नयना अभिप्रायथी चिंतचाय ते नयत्रिकवंति एटले त्रिकनयिकानि (त्रण नयवाळां) कहेवाय छे. 'चैराशिकसूत्रपरिपाट्या ' - अहीं त्रैराशिक एटले गोशालकना मतने अनुसरनारा कहेवाय छे, केमके तेओ सर्व वस्तु त्रण स्वरूपवाळी इच्छे छे, ते आ प्रमाणे
१. छिन्न एटले कोई पण एक छूटुं सूत्र एटले कोइनी साथ संबंध नहीं राखनारुं सूत्र के जे छेद नयने एटले एक ज छूटा नयने इच्छतुं होय ते सूत्र छिन्नच्छेदनयवाळु कद्देवाय छे अर्थात् बीजा कोइनी अपेक्षा नहीं राखनार स्वतंत्र सूत्रो.
समवाय २२ ॥
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