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II जीव, अजीव अने जीवाजीव. तथा लोक, अलोक अने लोकालोक विगेरे. नयनो विचार करीए तो पण तेओ त्रण प्रकारना
नयने इच्छे छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यास्तिक नय, पर्यायास्तिक नय अने उभयास्तिक नय. आ जत्रण नयने आश्रीने त्रिकनयिक एम का छे (४)। तथा' चउकनइयाइंति'-जे सूत्रो चार नयना अभिप्रायथी चिंतवाय ते चतुष्कनयिक कहेवाय छे. चार नय आ प्रमाणे-नैगमनय वे प्रकारे--सामान्य ग्राही अने विशेपग्राही. तेमां जे सामान्यग्राही छे ते संग्रह (नय)ने विषे अंतर्भाव (समावेश) पामे छे अने जे विशेषग्राही छे ते व्यवहार (नय) ने विपे अंतर्भाव पामे छे. आ प्रमाणे संग्रह, व्यवहार अने ऋजुसूत्र एत्रण अने शब्दादि त्रण मळीने एक ज एम चार नय जाणवा. स्वसमय विगेरेनो अर्थ प्रथमनी जेम जाणवो (५)। तथा पुद्गल एटले परमाणु विगेरेनो जे परिणाम एटले धर्म ते
पुद्गलपरिणाम कहेवाय छे. ते पांच वर्ण, वे गंध, पांच रस अने आठ स्पर्शना भेदो मळीने वीश प्रकारे थाय छे तथा Ke तेमां गुरुलघु अने अगुरुलघु ए वे नांखवाथी बावीश थाय छे. तेमां वायु विगेरे जे तिर्छ गमन करनार होय ते द्रव्य
गुरुलघु कहेवाय छे.अने जे सिद्धिक्षेत्र तथा घंटाने आकारे रहेल ज्योतिष्कना विमान विगेरे स्थिर द्रव्य छे ते अगुरुलघु
कहेवाय छे (६)॥ का तथा महित विगेरे छ विमाननां नामो आपेलां छे (८)। सूत्र-२२॥
हवे त्रेवीश स्थानक कहे छे.-- मू-तेवीसं सुयगडज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा-समए १, वेतालिए २, उवसग्गपरिणा ३,