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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
चो अंग
॥ ६ ॥
( २० ) असमाधिना वीश स्थानो छे, मुनिसुव्रत प्रभु वीश धनुष ऊंचा हता, सात नरकनीचेना सर्वे घनोदधिओ वीश हजार योजन जाडा छे, प्राणत कल्पना देवेंद्रने वीश हजार सामानिक देवो छे, नपुंसक वेदरूप वेदनीय कर्मनी बंधस्थिति वीश सागरोपम कोटाकोटिनी छे, प्रत्याख्यान नामना पूर्वमां वीश वस्तु छे, अवसर्पिणी अने उत्सर्पिणीनुं प्रमाण नेनुं मळीने वीश कोटाकोटि सागरोपमनुं छे, ते एक काळचक्र काय छे. रत्नप्रभा पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी स्थिति वीश पल्योपमनी छे, छठ्ठी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी वीश सागरोपनी स्थिति छे, केटलाक असुरकुमार देवोनी वीश पल्योपमनी स्थिति छे, सौधर्म अने ईशान कल्पमा केटलाक देवोनी वीश पल्योपमनी स्थिति छे, प्राणत कल्पमां देवोनी उत्कृष्ट स्थिति वीश सागरोपमनी छे, आरण कल्पने विषे देवोनी जघन्य स्थिति वीश सागरोपमनी छे. सात,
विसात विगेरे विमानमां उत्पन्न थयेला देवोनी उत्कृष्ट स्थिति वीश सागरोपमनी छे, ते देवो वीश पखवाडीए श्वास ले छे अने वीश हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केटलाक भव्य जीवो वीश भवे करीने मोक्ष पामवाना होय छे.
(२१) एकवीश शक्ल नामना दोष कहा छे, मोहनीयनी सात प्रकृतिओ क्षय पामी होय एवा निवृत्तिबादर नामना आठमा गुणस्थाने रहेला साधुने मोहनीय कर्मनी एकवीश प्रकृतिओ सत्तामां होय छे, अवसर्पिणीनो पांचमो अने छठ्ठो आरो एकवीश एकवीस हजार वर्षनो छे, ते ज रीते उत्सर्पिणीनो पहेलो अने बीजो आरो एकवीश एकवीरा हजार वर्षनो छे. रत्नप्रभा पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी एकवीश पल्योपमनी स्थिति छे, छठ्ठी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी एकवीश सागरोपमनी स्थिति छे, केटलाक असुरकुमार देवोनी एकवीश पल्योपमनी स्थिति छे, सौधर्म अने ईशान देवलोकमा केट
विषयानु
क्रम ॥
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