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| एकवीश प्रकृतिओ सत्तामा रहेली होय छे, ते आ प्रमाणे-अप्रत्याख्यान कषायनो क्रोध १, अप्रत्याख्यान कषायनो मान
२, अप्रत्याख्यान कषायनी माया ३, अप्रत्याख्यान कषायनो लोभ ४, प्रत्याख्यानावरण कषायनो क्रोध ५, प्रत्याख्यानावरण कपायनो मान ६, प्रत्याख्यानावरण कषायनी माया ७, प्रत्याख्यानावरण कषायनो लोभ ८, संज्वलन कषायनो क्रोध ९, संज्वलन कपायनो मान १०, संज्वलन कषायनी माया ११, संज्वलन कषायनो लोभ १२, स्त्रीवेद १३, पुरुषवेद १४, नपुंसकवेद १५, हास्य १६, अरति १७, रति १८, भय १९, शोक २० अने दुगुंछा २१. (२)। एक एक (दरेक ) अवसर्पिणीनो पांचमो अने छहो आरो काळे करीने एकवीश एकवीश हजार वर्षनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-दुषमा नामनो आरो अने दुषमदुपमा नामनो आरो. (३)। एक एक (दरेक) उत्सर्पिणीनो पहेलो अने बीजो आरो काळथी एकवीश एकवीश हजार वर्षनी कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-दुषमदुषमा नामनो आरो अने दुषमा नामनो आरो. (४)॥
आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी एकवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। छठी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी एकवीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी एकवीश पल्योपमनी | स्थिति कही छे (३)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी एकवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (४)।
आरण कल्पने विपे देवोनी उत्कृष्ट स्थिति एकवीश सागरोपमनी कही छे (५)। अच्युत कल्पने विषे देवोनी जघन्य स्थिति एकवीश सागरोपमनी कही छे (६)। जे देवो श्रीवत्स, श्रीदामगंड, माल्य, कृष्टि, चापोन्नत अने आरणावतंसक नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति एकवीश सागरोपमनी कही छे (७)॥