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द्वीपोना सूर्यो तो पोताना स्थानथी उपर सो योजन अने नीचे आठ सो योजन कुल ९०० योजन प्रकाश आपे छे, केम के त्यां क्षेत्रनु समानपणुं छे (नीचाण उंचाण नथी) (२)। तथा शुक्रना सूत्रमा 'नक्खत्ताई' ए ठेकाणे विभक्तिनो फेरफार करवानो छे तेथी नक्षत्रोनी साथे चार चरीने एवो अर्थ करवो (३) । तथा 'कलाओ त्ति'-भरतक्षेत्रनो विस्तार पांच सो छवीश योजन अने छ कळा छे' इत्यादिक जंबुद्वीपना गणितमा जे कळाओ कहेवामां आवे छे ते एक योजनना ओगणीशमा भागरूप जाणवी (४)। 'अगारमज्झे वसित्त त्ति'-अगार एटले घरमां अधिक एटले चिरकाळ सुधी राज्यनुं पालन करवाथी अधिकपणावडे 'आ' एटले नीतिनी मर्यादावडे 'वसित्वा (त्ता)'-चसीने एटले घरमां वास करीने (ओगणीश तीर्थकरो) अध्येष्ट्या (अध्योषा-प्रत.) प्रव्रजित थया छे, बाकीना पांच तीर्थंकरो कुमारपणामां ज प्रव्रजित थया छे. कयुं छे के-" महावीर, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ, मल्लिनाथ अने वासुपूज्य आ पांच जिनेश्वरोने मूकीने बीजा जिनेश्वरो राजा थया हता-राज्य भोगव्या पछी दीक्षित थया हता. (५) ॥ सूत्र-१९ ॥
हवे वीश स्थानक कहे छे.. मू०-वीसं असमाहिठाणा पन्नत्ता, तं जहा-दवदवचारि यावि भवइ १,अपमज्जियचारि यावि
१. अहीं गृहवासमां वसीने एनो अर्थ राजा थइने एवो टीकाकारे कर्यो छे, कारण के अविवाहितपणे तो पांचमांथी बे तीर्थकर ज ( १९ मा ने २२ मा ) दीक्षित थया छे.