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विषयानुक्रम ।
श्री
संयम छे, मानुपोत्तर पर्वत सत्तर सो ने एकवीश योजन ऊंचो । अने ईशान कल्पमा केटलाक देवोनी सत्तर पल्योपमनी स्थिति समवायाङ्ग छे, सर्व वेलंधर अने अनुवेलंधर नागराजना आवास पर्वतो । छे, महाशुक्र कल्पमां देवोनी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर सागरो
सत्तर सो ने एकवीश योजन ऊंचा छे, लवणसमुद्र मध्यना दश पमनी छे, सहस्रार कल्पमा जघन्य स्थिति सत्तर सागरोपचोपं अंग 2 हजार योजनमा तळीयाथी शिखाना उपरना भाग सुधी सत्तर | मनी छे, सामान विगेरे विमानोमा उत्पन्न थयेला देवोनी
हजार योजन ऊंचो छे, रत्नप्रभा पृथ्वीना समभूभागथी साधिक उत्कृष्ट स्थिति सत्तर सागरोपमनी छे, ते देवो सत्तर पखवासत्तर हजार योजन ऊंचे गया पछी जंघाचारण अने विद्याचारण डीए श्वास ले छे अने सत्तर हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केटमुनि तिरछी गति करे छे, चमरेंद्रनो तिगिंछ कूट सत्तर सो लाक भव्य जीवो सत्तरमे भवे मोक्षे जशे. ने एकवीश योजन ऊंचो छे, ते ज प्रमाणे बलींद्रनो रुचकेंद्र- (१८) अढार प्रकारचें ब्रह्मचर्य छे, अरिष्टनेमिने कूट पण छे. मरणना सत्तर प्रकार छ, सूक्ष्मसंपराय गुण
अढार हजार साधुओनी उत्कृष्ट संपदा हती, महावीरस्वामीए स्थाने रहेला भगवान सत्तर कर्मप्रकृतिने बांधे छे, रत्नप्रभा
साध्वाचारना अढार स्थानो कह्या छे, आचारांग सूत्रना पृथ्वीमा केटलाक नारकीओनी सत्तर पल्योपमनी स्थिति छे, अढार हजार पदो छे, ब्राह्मी लिपि अढार प्रकारनी छे, अस्तिपांचमी पृथ्वीमा उत्कृष्ट स्थिति सत्तर सागरोपमनी छे, छठ्ठी नास्तिप्रवाद पूर्वमा अढार वस्तु छे, पांचमी पृथ्वीनो विस्तार पृथ्वीमा सत्तर सागरोपमनी जघन्य स्थिति छ, केटलाक (पिंड ) एक लाख ने अढार हजार योजननो छे, अपाढ असुरकुमार देवोनी सत्तर पल्योपमनी स्थिति छे, सौधर्म । मासमा एक वखत अढार मुहूर्तनो दिवस अने पोप मासमां एक
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