________________
भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखना अंतने करशे. (३)॥
टीकार्थः-हवे अढार स्थानक कहे छे-अहीं स्थिति सूत्रोनी पहेलां आठ सूत्रो छे, अने ते सुगम छे. विशेष ए के-बंभ एटले ब्रह्मचर्य, तथा औदारिक कामभोग एटले मनुष्य अने तिर्यंच संबंधी विषयो, तथा दिव्य (वैक्रिय) कामभोग एटले देव संबंधी विषयो (१)। तथा 'सखुड्डगवियत्ताणं ति'-क्षुद्रक अने व्यक्त सहित. तेमां क्षुद्रक एटले वय अने श्रुतवडे नाना तथा व्यक्त एटले वय अने श्रुतवडे परिणमेला-मोटा (नाना मोटा सर्व ) साधुओना स्थानो एटले त्याग करवानी
अने सेवा-ग्रहण करवानी वस्तुओरूपी स्थानो अढार आ प्रमाणे छ-छ व्रत एटले पांच महाव्रतो अने छठं रात्रिभोजननी IY विरति, कायषट्रक एटले पृथ्वीकायादिक छनी रक्षा, अकल्प्य एटले न कल्पे तेवो पिंड, शय्या, वस्त्र, पात्र विगेरेरूप पदार्थ, 16
गृहिभाजन एटले थाळी तपेली विगेरे, पर्यंक एटले मांचो विगेरे, निपद्या एटले स्त्रीनी साथे वेसते, स्नान एटले शरीरने | पखाळवू ते, तथा शोभा करवी ते-ए छर्नु वर्जबुं ते (३)। चूलिका सहित आचारांग नामनुं प्रथम अंग एटले के आचारांग नावे श्रुतस्कंध छे, तेमां बीजा श्रुतस्कंधमां पिंडैषणा ( अध्ययन ) विगेरे पांच चूलाओ छे अने पहेला श्रुतस्कंधा नत्र ब्रह्मचर्य नामना अध्ययनो छे, ते पहेला श्रुतस्कंधना ज पदोनी आ अढार हजार प्रमाण संख्या कही छे, परंतु चूलाना पदनी संख्या कही नथी. ते विषे कह्यु छ के-" नव ब्रह्मचर्य अध्ययनरूप वेद( आचारांग)ना अढार हजार पदो कयां छे, अने तेनी पांच चूलिकाने साथे लइए तो घणा पदो थाय छे." अहीं मूळ सूत्रमा “चूलिका सहित आचारांग सूत्रना" एम विशेषण आपीने चूलिका पण साथे गणी छे ते मात्र आ आचारांग सूत्र चूलिका सहित छे, चूलिका रहित नथी, एम चूलिकानी