________________
श्री
समवाय
चोधू अंग ॥१॥
न तथा बोलिदिलिपि १८. (५)। अस्तिनास्तिप्रवाद नामना पूर्वमा अढार वस्तुओ कही छे (६)। धूमप्रभा नामनी
पांचमी नरक पृथ्वीनो विस्तार (पृथ्वीपिंड) एक लाख अने अढार हजार योजन प्रमाण कह्यो छे (७)। पोष अने अपाढ मासमां एक दिवस (वखत) उत्कृष्टपणे अढार मुहूर्त्तनो दिवस थाय छे अने एक दिवस (वखत) उत्कृष्टपणे अढार मुहर्तनी रात्रि थाय छे (एटले के पोप मासमां मकरसंक्रांतिने रोज अढार मुहूर्तनी रात्रि अने अषाढ मासमां कर्कसंक्रात्रिने रोज अढार मुहर्त्तनो दिवस थाय छे) (८)॥
आ रतप्रभा नामनी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी अढार पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। छठी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी अढार सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी अढार पल्योपमनी स्थिति कही छे (३)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी अढार पंल्योपमनी स्थिति कही छे (४)। सहस्रार कल्पने विषे देवोनी उत्कृष्ट स्थिति अढार सागरोपमनी कही छे (५)। प्राणत कल्पमा [केटलाक देवोनी जघन्य स्थिति अढार सागरोपमनी कही छे (६)। जे देवो काळ, सुकाळ, महाकाळ, अंजन, रिष्ट, शाल, समान, दुम, महाद्रुम, विशाळ, सुशाळ, पद्म, पद्मगुल्म, कुमुद, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पौंडरीक, पौंडरीकगुल्म, सहस्रारावतंसक नामना विमानमा उत्पन्न थया होय, ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति अढार सागरोपमनी कही छे (७)॥
ते देवो अढार अर्धमासे (पखवाडीये) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने अढार हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छे के जेओ अढार
BSF-8-950
camमामा