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समवाय
समवायाङ्ग
चो अंग ॥ ६३॥
सोळमें अध्ययन छे, तेथी करीने गाथा नामर्नु सोळमुं अध्ययन छे जेमनु (जेमनी मध्ये) ते गाथापोडशक कहेवाय छे. ते १६ मा 'समए त्ति'-नास्तिक विगेरेना समय( सिद्धांत )ने प्रतिपादन करनार अध्ययन समय नामे ज कहेवाय छे. वैतालीय नामना छंद( श्लोक )नी जातिवडे रचेलं अध्ययन वैतालीय कहेवाय छे, ए ज प्रमाणे वीजां पण अध्ययननां नामो पोतपोताना अर्थने अनुसारे जाणी लेवा. तेमां 'समोसरणे त्ति'-समवसरण एटले त्रण सो ने वेसठ प्रवादीओना मतनो समूह. 'अहातहिए त्ति'-जेवी वस्तु होय तेवी ज जेने विपे कहेवामां आवे ते यथातथिक नामर्नु अध्ययन, तथा ग्रंथने कहेनारुं अध्ययन ग्रंथ कहेवाय छे. 'जमइए त्ति'-यमकीय एटले यमकनी जेमा रचना करी होय ते सूत्र तथा 'गाहेति' पूर्वना पंदर अध्ययनोनो अर्थ जेमां गायो-कह्यो छे ते गाथा कहेवाय छे अथवा ते पंदर अध्ययनोमां प्रतिष्ठाभूत होवाथी पण गाथा नामर्नु अध्ययन कहेवाय छे (१). मेरुपर्वतना ( सोळ) नामना सूत्रमा एक गाथा अने एक श्लोक लख्यो छे. तेमां'मज्झे लोगस्स नाभी यत्ति'लोकमध्य अने लोकनाभि एम वे नाम लख्या छे. तथा उत्तर एवं नाम कयुं छे ते भरतादिक(सर्व क्षेत्रो)नी उत्तर दिशामां (मेरु) रहेलो छे. तेथी कहेलुं छे. ते विषे कधु छे के'सव्वेसिं उत्तरो मेरु' त्ति-'सर्व क्षेत्रादिकनी उत्तरमा मेरु रहेलो छे.' तथा 'दिसाइ यत्ति'-(सर्व) दिशाओनो आदिभूत ते दिगादि ए, पण मेरुनु नाम छे (केमके मेरुनी मध्ये रहेला आठ रुचक प्रदेशने आधीने पूर्वादिक दिशा-विदिशाओनी उत्पत्ति थाय छे) तथा 'वडिंसे इय त्ति'-अवतंस-शेखरनी जेवो होवाथी अवतंस एवं पण मेरुनु नाम छे) (३)। पुरुषादानीय एटले पुरुषोने मध्ये आदेय नामकर्मवाळा (पार्श्वनाथ.) (४)। तथा आत्मप्रवाद ए सातमु पूर्व
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