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पूर्वमा सोळ वस्तुओ ( अध्ययननी जेवा विभागो) कहेल छे (५)। चमरेंद्र अने बलींद्रना अवतारिकालयन (प्रासाद | मध्ये रहेली पीठिका) आयाम-विष्कमे करीने सोळ हजार योजन प्रमाण कहेल छे (६)। लवणसमुद्रना मध्य भागमां (दश हजार योजनमा) उत्सेधनी ( वेळानी) वृद्धि सोळ हजार योजननी कही छे (७)॥
आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी सोळ पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। पांचमी पृथ्वीने विषे । | केटलाक नारकोनी सोळ सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी सोळ पल्योपमनी स्थिति कही।
छ (३)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी सोळ पल्योपमनी स्थिति कही छे (४)। महाशुक्र कल्पने विषे केटलाक देवोनी सोळ सागरोपमनी स्थिति कही छे (५)। जे देवो आवर्त, व्यावर्त, नंद्यावर्त, महानंद्यावर्त, अंकुश, | अंकुशप्रलंब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र अने भद्रोत्तरावतंसक नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति सोळ सागरोपमनी कही छे (६)॥
ते देवो सोळ अर्धमासे ( पखवाडीए) आन ले छ, प्राण ले छे, एटले उच्छास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने सोळ हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाएक भवसिद्धिक ( भव्य ) जीवो छ के जेओ सोळ भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥
- टीकार्थ:-हवे सोळ स्थानकनुं सूत्र कहे छे, अने ते सुगम छे. विशेष एके-स्थितिनां सूत्रोनी पहेलां गाथाषोडशक। | विगेरे सात सूत्रो कह्यां छे, तेमां सूत्रकृतांग( सुगडांग )ना पहेला श्रुतस्कंधमां सोळ अध्ययनो छे, तेमां गाथा नामर्नु