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तेनो स्वाद रहे छे, ते विषे शास्त्रमा का छे के-"कोइ जीव उपशम सम्यक्त्वथकी पडयो अने हजु मिथ्यात्वने पाम्यो समवाय मवायाजा
नथी, तेनी वच्चेना भागमा छ आवलिका सुधी सास्वादन सम्यक्त्व होय छे." आवा आस्वाद सहित जे सम्यग्दृष्टि ते १४॥
सास्वादन सम्यग्दृष्टि कहेवाय छे एम ( कर्मधारय समासनो) विग्रह करवो २, 'सम्मामिच्छदिहि त्ति' जेनी दृष्टि अंग सम्यक् अने मिथ्या छे ते सम्यमिथ्यादृष्टि कहेवाय छे एटले के जेने अमुक प्रकारचें दर्शनमोहनीय कर्म उदयमां आव्यु
होय ते ३, तथा अविरत सम्यग्दृष्टि एटले देशविरति रहित (एकलो सम्यग्दृष्टि) ४, तथा विरताविरत एटले देशविरतिवाळो अर्थात् श्रावक ५, तथा प्रमत्तसंयत एटले कांइक प्रमादी सर्वविरतिवाळो (साधु)६, तथा अप्रमत्तसंयत एटले सर्वथा प्रमाद रहित एवो तेज (सर्वविरतिवाळो साधु), तथानियही' अहीं क्षपकणिने के उपशमश्रेणिने पामेलो जीव के जेना दर्शनसप्तक क्षीण थया होय अथवा जेना दर्शनसप्तक उपशांत थया होय ते निवृत्तिवादर कहेवाय छे. तेमां निवृत्ति एटले जे गुणस्थानकने समकाळे ( एकी साथे) पामेला जीवोना अध्यवसायनो भेद (विशेष प्रकारनो अध्यवसाय) जेमा प्रधान (मुख्य ) होय एवो जे बादर एटले वादर संपरायवाळो ते निवृत्तिवादर कहेवाय छे ८, तथा 'अणियविबायरे त्ति' अनिवृत्तिवादर, आ (गुणस्थानवाळो) आठ कषाय खपाववानो के उपशमाववानो आरंभ करे त्यारथी अने
नपुंसकवेदना क्षयनो के उपशमनो आरंभ करे त्यारथी आरंभीने (लइने) चादर लोभना खंडने खपावे अथवा उपशमावे ला त्या सुधी होय छे ९, तथा 'सुहुम संपराए त्ति' सूक्ष्म एटले संज्वलन लोभनो असंख्यातमो अंश, तेवो सूक्ष्मसंपरायला
१. दर्शन मोहनीयनी सात प्रकृति.
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