SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जेमा अनेक प्रकारनी विद्याना अतिशयो वर्णन करायेल छे ते विद्यानुप्रवाद (१०) पूर्व छ, 'अवंझ पाणाउ वारसं पुव्वं ' जेमां सम्यग् ज्ञानादिक अवंध्य-सफळ, एवा वर्णन करायेल छे ते अवंध्य नामर्नु अग्यारमुं. (११) पूर्व छ, जेमां प्राण एटले जीव अने, तेना आयुष्य अनेक प्रकारे वर्णन करायेल छे ते प्राणायु नामर्नु बारमुं (१२) पूर्व छे, 'तत्तो किरियविसालं'-त्यारपछी जेमा विशाळ एटले विस्तीर्ण एवी कायिकी विगेरे २५ क्रियाओ भेद सहित कहेवामां आवेल छे ते क्रियाविशाळ नामर्नु तेरK (१३) पूर्व छ, तथा 'पुव्वं तह बिंदुसारं च'-अहीं 'लोक' ए शब्दनो लोप कर्यो छे एम जाणवू. तेथी अक्षरना बिंदुनी जेम (अनुस्वार जेम अक्षरने माथे होय छे तेम) लोकना सारभूत एटले सर्वोत्तम जे छे ते लोकबिंदुसार नामर्नु चौदU (१४) पूर्व छे. (२)। तथा 'चोद्दस वत्थूणि त्ति'-बीजा पूर्वने विषे जे वस्तु एटले विभाग विशेष छे ते चौद मूळ वस्तु छे, परंतु चूलावस्तु तो बार छे (३)। तथा 'साहस्सिओ'-सहस्रो जे तेज साहस्य एटले हजार कहेवाय छे (४)। तथा'कम्मविसोही-कर्मविशोधि मार्गणाने एटले ज्ञानावरणादि कर्मविशुद्धिनी गवेषणाने आश्रीने जीवना (गुण )स्थानको चौद कहेला छे, ते आ प्रमाणे-जेनी दृष्टि मिथ्या एटले विपरीत होय ते मिथ्यादृष्टि कहेवाय छे एटले के जेने उदयमा आवेलुं अमुक प्रकारचें मिथ्यात्व मोहनीय कर्म उदयमां होय ते १, तथा 'सासायणसम्मदिहि त्ति' काइक ( जराक) तत्त्वश्रद्धाना रसना आस्वाद सहित जे होय छे ते सास्वादन कहेवाय छे. अहीं घंटालोलाना न्याये करीने उपशम सम्यक्त्वनो त्याग करेलो होय छे, ते त्याग कर्या पछी छ आवलिका सुधी १. अनंतानुबंधी कषायना उदयथी उपशम समकितने वमी नाखवू, एटले खाधेल वस्तु वमतां तेनो स्वाद प्रथम खातां आवेलो TEL तेवो फरीने गळामां आवे ते. घंटालाला न्याय समजवो.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy