SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एटले कषाय जेने होय ते सूक्ष्मसंपराय एटले लोभना छेल्ला परमाणुओने वेदनार कहेवाय छे. आ (सूक्ष्मसंपराय ) वे प्रकारनो छे, ते कहे छे-उपशमक एटले उपशमश्रेणिने पामेलो अथवा क्षपक एटले क्षपकश्रेणिने पामेलो. आ दशमुं जीवस्थान कह्यु १०, तथा जेने मोह एटले मोहनीय कर्म उपशांत छे एटले सर्वथा उदयावस्थाने पामेल नथी ते उपशांतमोह एटले उपशमवीतराग कहेवाय छे. आ उपशमश्रेणिनी समाप्तिने वखते ११ मे गुणठाणे जीव एक अंतर्मुहर्त सुधी होय छे. त्यारपछी अवश्य त्यांथी पडे ज छे ११, तथा जेनो मोह सर्वथा क्षीण थयो छे एटले सत्तामा पण रह्यो नथी ते क्षीणमोह एटले क्षीणमोहवीतराग कहेवाय छे, आ गुणस्थान पण एक अंतर्मुहूर्त सुधीज होय छे (त्यारपछी तरत उपरना गुणस्थानके चडे छे ) १२, तथा सयोगी केवळी एटले मन विगेरेना व्यापारवाळा केवळज्ञानी १३, तथा अयोगी केवळी एटले मन विगेरे योगना व्यापार जेणे रुंध्या छे एवा शैलेशीकरणने पामेला मात्र पांच इस्व अक्षरना उच्चार जेटला काळ सुधी ज रहेनार, ए चौदमुं जीव (गुण)स्थान छे. १४. (५)। 'भरहे'-भरत अने ऐवतनी जीवा. अहीं भरत अने ऐरवत-ए बे क्षेत्र प्रत्यंचा चडावेला धनुषने आकारे रहेला छे, तेथी तेमनी जीवा (प्रत्यंचा ) होइ शके छे. तेमां हिमवान पर्वतनी आ फनी) आंतरा रहित (छेल्ली) प्रदेशनी जे श्रेणि ते भरतनी जीवा कहेवाय छे, अने शिखरी पर्वतनी पेली बाजुनी जे आंतरा रहित प्रदेशनी श्रेणि ते ऐरवतक्षेत्रनी जीवा कहेवाय छे. (६)।' चाउरंतचक्कवहिस्स त्ति' चार अंत एटले विभाग छे जे पृथ्वीने विषे ते चतुरंत भूमि कहेवाय छे. तेने विषे जे स्वामीपणे थयेला ते चातुरंत कहेवाय छे. १. चार दिशाना अंत सुधीना ते क्षेत्रना स्वामी.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy