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विषयानु
श्री समवायाङ्ग
पोषू अंग
स्थिति दश हजार वर्पनी छे, सौधर्म अने ईशान कल्पमां । मेरुपर्वत पृथ्वीतळथी ऊंचे जतां अग्यारमे भागे ओछा विष्ककेटलाक देवोनी दश पल्योपमनी स्थिति छ, ब्रह्मालोकमां भवाळो थतो जाय छे. रत्नप्रभा पृथ्वीमा केटलाक नारकीदेवोनी उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपमनी छे, लांतकमां जघन्य ओनी अग्यार पल्योपमनी स्थिति कही छे, पांचमी पृथ्वीमां स्थिति दश सागरोपमनी छे. घोष विगैरे विमानमा उत्पन्न केटलाक नारकीओनी अग्यार सागरोपमनी स्थिति छ, केटथयेला देवोनी उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपमनी छे, ते देवो लाक असुरकुमार देवोनी अग्यार पल्योपमनी स्थिति छे, दश पखवाडीए श्वास ले छे अने दश हजार वर्षे आहार सौधर्म अने ईशान कल्पमा केटलाक देवोनी अग्यार पल्योइच्छे छे. केटलाक भव्य जीवो दश भवे मोक्ष पाम- पमनी स्थिति छ, लांतक कल्पमा केटलाक देवोनी अग्यार वाना होय छे.
सागरोपमनी स्थिति कही छे. ब्रह्म विगेरे विमानमां उत्पन्न (११) अग्यार श्रावकनी प्रतिमाओ छे, लोकांतथी थयेला देवोनी उत्कृष्ट स्थिति अग्यार सागरोपमनी छे, ते अग्यार सो ने अग्यार योजन अंदर आवीए त्यांथी देवो अग्यार पखवाडीए श्वास ले छे अने अग्यार हजार वर्षे ज्योतिपनी शरूआत थाय छे. आ जंबूद्वीपना मेरुथी अग्यार आहार इच्छे छे. केटलाक भव्य जीवो अग्यार भवे मोक्षमा सो ने एकवीश योजन दूर ज्योतिपचक्र रहेलं छे. महावीर- जवाना होय छे. स्वामीने अग्यार गणधरो हता. मूळ नक्षत्रना अग्यार ताराओ (१२) वार भिक्षुप्रतिमा, बार प्रकारनो संभोग छे. नीचेना त्रण प्रैवेयकमां एक सो ने अग्यार विमानो छे. अने बार आवर्त्तवालु कृतिकर्म कहुं छे. विजया राजधानीनो
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