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ऊंचा हता. अभिजित् नक्षत्र साधिक नव मुहूर्त सुधी चंद्रनो | समाधिना स्थानो कह्या छे. मेरुपर्वतनो मूळमां (पृथ्वीतळ योग पामे छे, अभिजित् विगेरे नव नक्षत्रो चंद्रनी साथे उपर ) विष्कम दश हजार योजननो छे, अरिष्टनेमि प्रभु उत्तर दिशामा योगने पामे छे, आ रत्नप्रभा पृथ्वीथी तिर्यो- दश धनुष ऊंचा हता, कृष्ण वासुदेव अने राम बळदेव दश लोक नवसो योजन ऊंचो छे. ज्योतिष्चक्र ९०० योज- | धनुष ऊंचा हता. दश नक्षत्रो ज्ञाननी वृद्धि करनारा छे, दश |ननी अंदर छे, लवण समुद्रमांथी नव योजन सुधीना मत्स्यो प्रकारना कल्पवृक्षो छे. रत्नप्रभा पृथ्वीमा जघन्य स्थिति
जंबूद्वीपमा प्रवेश करे छे. विजयद्वारनी एक एक बाहाने दश हजार वर्षनी छे, रत्नप्रभा पृथ्वीमा केटलाक नारकोनी दश विषे नव नव भूमिगृहो रहेला छे, वानव्यंतर देवोनी सुधर्मा पल्योपमनी स्थिति कही छे, चोथी पृथ्वीमा दश लाख नरसभाओ नव योजन ऊंची छे, दर्शनावरणीय कर्मनी नव उत्तर- कावासा छे, चोथी पृथ्वीमा उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपमनी प्रकृतिओ कही छे. केटलाक देवो अने नारकी जीवो नव छे, पांचमी पृथ्वीमा जघन्य स्थिति दश सागरोपमनी छे, पल्योपमनी अने नव सागरोपमनी स्थितिवाळा छे. जे देवोनी | असुरकुमार देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्पनी छे, उत्कृष्ट स्थिति नव सागरोपमनी छे ते देवो नव पखवाडीए असुरेंद्र सिवायना नव निकायना भवनपति देवोनी जघन्य श्वास ले छे अने नव हजार वर्षे आहार इच्छे छे. केटलाक स्थिति पण दश हजार वर्षनी छे, केटलाक असुरकुमार देवोनी भव्य जीवो नव भववडे सिद्धिपदने पामवाना होय छे. दश पल्योपमनी स्थिति छ, प्रत्येक वनस्पतिकायनी उत्कृष्ट
(१०) दश प्रकारनो साधुधर्म अने दश चित्तनी | स्थिति दश हजार वर्षनी छे, वाणव्यंतर देवोनी जघन्य