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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
॥ ४४ ॥
- रात्रि बार मुहूर्त्तनी कही छे ८ । ए ज प्रमाणे दिवस पण ( सर्व जघन्य बार मुहूर्त्तनो ) जाणवो ९ । सर्वार्थसिद्ध नामना विमाननी उपली स्तूपना अग्रभागथकी बार योजन उपर ऊंचे जइए त्यां ईपत्प्राग्भार नामनी पृथ्वी कही छे ( त्यांथी - उत्सेधांगुलना एक योजने लोकांत आवे छे ) १० । ईषत्प्राग्भार नामनी पृथ्वीना वार नाम कहेलां छे, ते आ प्रमाणे - ईषत् १, ईषत्प्राग्भार २, तनु ३, तनुकतर ४, सिद्धि ५, सिद्धालय ६, मुक्ति ७, मुक्तालय ८, ब्रह्म ९, ब्रह्मावतंसक १०, लोकप्रतिपूरणा ११ अने लोकाग्रचूलिका १२ ॥ ११ ॥
आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी बार पल्योपमनी स्थिति कही छे १ । पांचमी पृथ्वीने विपे केटलाक नारकीओनी वार सागरोपमनी स्थिति कही छे २ । केटलाक असुरकुमार देवोनी बार पल्योपमनी स्थिति कही छे ३ । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी बार पल्योपमनी स्थिति कही छे ४ । लांतक कल्पमां केटलाक देवोनी बार सागरोपमनी स्थिति कही छे ५ । जे देवो महेंद्र, माहेंद्रध्वज, कंबु, कंबुग्रीव, पुंख, सुपुंख, महापुंख, पुंड, सुपुंड, महापुंड, नरेंद्र, नरेंद्रकांत अने नरेंद्रावतंसक नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय, ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति बार सागरोपमनी कही छे ॥ ६ ॥
ते देवो चार अर्धमासे ( पखवाडीए) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे १ । ते देवोने चार हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे २ । एवा केटलाक भवसिद्धिक ( भव्य ) जीवो छे के जेओ बार भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण ( शीतळता ) पामशे अर्थात् सर्व दुःखना अंतने करशे ॥ ३ ॥
चो
अंग ॥
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