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________________ ORG को होय, ते श्रावक 'सचित्ताहारपरिज्ञात' कहेवाय छे. आ सातमी प्रतिमा छे. अहीं भावार्थ ए छे के-पूर्व कहेली छए प्रतिमाना अनुष्ठान सहित सात मास सुधी जे श्रावक प्रासुक आहार करे तेने आ सातमी प्रतिमानुं आराधन थाय छे.७। तथा आरंभ एटले पृथ्वीविगेरेनुं मर्दन कर ते, परिज्ञात एटले पूर्वनी ज जेम जाणीने जेणे निषेध कयों होय, ते श्रावक 'आरंभपरिज्ञात' कहेवाय छे, आ आठमी प्रतिमा छे. अहीं भावार्थ ए छे के पूर्वे कहेला समग्र अनुष्ठान सहित आठ मास सुधी पृथ्व्यादिक आरंभर्नु जे वर्जq ते आठमी प्रतिमा कहेवाय छे ८ । तथा प्रेष्य एटले आरंभना कार्यमा प्रेरणा करवा लायक चाकरो जेणे परिज्ञात एटले निषेध कर्या होय ते श्रावक 'प्रेष्यपरिज्ञात' कहेवाय छे ते नवमी प्रतिमा. आनो भावार्थ ए छे के-पूर्वे कहेला समग्र अनुष्ठान सहित श्रावक नव मास सुधी बीजानी पासे आरंभ करावे नहीं ते नवमी प्रतिमा छे ९ । तथा उद्दिष्ट एटले ते ज (प्रतिमा वहन करनार ) श्रावकने उद्देशीने करेलु जे ओदनादिक भक्त ते उद्दिष्टभक्त कहेवाय छे, ते जेणे परिज्ञात एटले जाणीने निषिद्ध कयु होय ते श्रावक 'उद्दिष्टभक्तपरिज्ञात' प्रतिमा धारक कहेवाय छे. अहीं भावार्थ ए छ के-पूर्वे कहेला समग्र गुण सहित श्रावक दश मास सुधी आधार्मिक भोजननो त्याग करे, सजायावडे मस्तकने मुंडावे अथवा शिखावाळो रहे, तथा कोइकाइ पण घरनो वृत्तांत पूछे त्यारे पोते ते वात जाणतो होय तो 'हुं जाणुं छु' एम कहे अने न जाणतो होय तो 'हुँ जाणतो नथी' एम कहे, आ प्रमाणे जे उत्कृष्टपणे विचरे ते श्रावकने दशमी प्रतिमा कहेवाय छे १० । तथा श्रमण एटले निग्रंथ, तेनुं अनुष्ठान (क्रिया.) करवाथी जे तेना जेवो होय ते 'श्रमणभूत' एटले साधुतुल्य कहेवाय छे. अहीं सूत्रमा जे च' शब्द छे ते समुच्चय ( अने RECEMBEDEOS SUPS
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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