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________________ .. श्री चोथं अंग। समवायाङ्ग सत्र ॥ ॥४०॥ प्रतिमा धारण करे. आ अर्थवाढं सूत्र अधिकार करेला आ सूत्र अने पुस्तकोने विषे देखातुं नथी. परंतु उपासकदशांग विगेरेमां प्राप्त थाय छे-देखाय छे. तेथी तेने आधारे आ अर्थ देखाडयो छे. तथा पर्व सिवायनी बीजी तिथिओमां दिवसे ब्रह्मचारी रहे अने' रत्ति' रात्रिने विषे, शुं करे ? ते विषे कहे छे के--रात्रिए स्त्रीओर्नु अथवा तेमना भोगोनुं प्रमाण जेणे कयु होय ते 'परिमाणकृत' कहेवाय छे. आनो भावार्थ आ प्रमाणे छे--दर्शन, व्रत, सामायिक अने अष्टम्यादिक पर्वतिथिना पौषधोपवास ए चारे प्रतिमा सहित श्रावक पांच मास सुधी पर्वतिथिने विपे एक रात्रिनी प्रतिमा धारण करे (कायोत्सर्ग करे) अने शेष तिथिओमां दिवसे ब्रह्मचारी रहे अने रात्रिए मैथुनर्नु परिमाण करे, स्नान न करे, तथा धोतीयानो कछोटो (काछडी) न बांधे. आ रीते करवाथी आ पांचमी प्रतिमा थाय छे. ते विषे अन्य शास्त्रमा कयुं छे के-" अष्टमी अने चतुर्दशीने विषे एक रात्रिनी प्रतिमा धारण करे, स्नान न करे, दिवसे भोजन करे, धोतीयानो कछोटो छूटो राखे, तथा प्रतिमा सिवायनी तिथिओमां दिवसे ब्रह्मचारी अने रात्रे मैथुन- परिमाण करनार थाय."५।तथा दिवसे अने रात्रीए पण ब्रह्मचारी, अस्नायीस्नान रहित, अहीं कोइ ठेकाणे आ प्रमाणे का छे-'अनिसाइ'-अनिशादी एटले रात्रिए भोजन न करे ते, 'वियडभोई' प्रगट प्रकाशमां एटले दिवसेज पण रात्रिए नहीं, दिवसे पण प्रकाश विनाना स्थानने विपे भोजन न करे, ते विकटभोजी कहेवाय छे, तथा मोलिकडे-'धोतीयानो कच्छ बांधे नहीं ते. आ छठी प्रतिमा कहेवाय छे. अहीं भावार्थ ए छे के--पांचे प्रतिमाने विषे कहेला अनुष्ठान सहित छ मास सुधी ब्रह्मचारी रहे, तेने आ छठी प्रतिमार्नु आराधन थाय छे ६ । तथा सचित्त आहार जेणे परिज्ञात एटले ते( सचित्त आहार )ना स्वरूपादिक जाणवाथकी त्याग
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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